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10 Class लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 4 जाति धर्म और लैंगिक मसले Notes in hindi

जाति धर्म और लैंगिक मसले notes, Class 10 civics chapter 4 notes in hindi. जिसमे हम श्रम का लैंगिक विभाजन , नारीवादी , नारीवादी आंदोलन , पितृ प्रधान समाज , महिलाओं का दमन , पारिवारिक कानून , पारिवारिक कानून , साम्प्रदायिकता , धर्मनिरपेक्षता , धर्मनिरपेक्ष शासन , जातिवाद , राजनीति में जाति सूची आदि के बारे में पड़ेंगे ।

Class 10 लोकतांत्रिक राजनीति Chapter 4 जाति धर्म और लैंगिक मसले Notes in hindi

📚 अध्याय = 4 📚
💠 जाति धर्म और लैंगिक मसले 💠

❇️ श्रम का लैंगिक विभाजन :-

🔹 लिंग के आधार पर काम का बँटवारा ।

🔹 जैसे घर के अंदर के अधिकतर काम औरतें करती हैं । पुरुषों द्वारा बाहर के काम काज किये जाते हैं । एक ओर जहाँ सार्वजनिक जीवन पर पुरुषों का वर्चस्व रहता है वहीं दूसरी ओर महिलाओं को घर की चारदीवारी में समेट कर रखा जाता है ।

❇️ नारीवादी :-

🔹 नारी और नर ( महिला एवं पुरूषों ) के लिए एक समान अधिकारों की मांग करना या नारी सशक्तिकरण की माँग ।

❇️ नारीवादी आंदोलन :-

🔹 महिलाओं के राजीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने , उनके लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की माँग और उनके व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन में बराबरी की माँग करने वाले आंदोलन को नारीवादी आंदोलन कहते हैं ।

❇️ नारीवादी आंदोलन की विशेषताएँ :-

यह आंदोलन महिलाओं के राजनैतिक अधिकार और सत्ता पर उनकी पकड़ की वकालत करता है ।

इसमें महिलाओं को घर की चार – दीवारी के भीतर रखने और घर के सभी कामों का बोझ डालने का विरोध सम्मिलित है ।

यह पितृसत्तात्मक परिवार को मातृसत्तात्मक बनाने की ओर अग्रसर है ।

महिलाओं की शिक्षा तथा देश के विभिन्न क्षेत्रों में उनके व्यवसाय , सेवा आदि का समर्थक है ।

यह महिलाओं के हर प्रकार के शोषण का विरोध करता है ।

❇️ पितृ प्रधान समाज :-

🔹 ऐसा समाज जिसमें परिवार का मुखिया पिता होता है और उन्हें औरतों की तुलना में अधिक अधिकार होता है ।

❇️ महिलाओं का दमन :-

साक्षरता की दर – महिलाओं में साक्षरता की दर 54 प्रतिशत है जबकि पुरुषों में 76 प्रतिशत ।

ऊँचा वेतन और ऊँची स्थिति के पद , इस क्षेत्र में पुरूष महिलाओं से बहुत आगे हैं ।

असमान लिंग अनुपात – अभी भी प्रति 1000 पुरूषों पर महिलाओं की संख्या 919 है ।

घरेलु और सामाजिक उत्पीड़न ।

जन प्रतिनिधि संस्थाओं में कम भागीदारी अथवा प्रतिनिधित्व ।

महिलाओं में पुरूषों की तुलना में आर्थिक आत्मनिर्भरता कम ।

❇️ महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व :-

🔹 भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है । जैसे , लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या पहली बार 2019 में ही 14.36 फ़ीसदी तक पहुँच सकी है ।

🔹 राज्यों की विधान सभाओं में उनका प्रतिनिधित्व 5 फ़ीसदी से भी कम है । इस मामले में भारत का नंबर दुनिया के देशों में काफ़ी नीचे है ।

❇️ विधायिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार के लिए क्या किया जा सकता है ?

🔹 विधायिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार के लिए , महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण कानूनी रूप से पंचायतों की तरह बाध्यकारी होना चाहिए ।

🔹 पंचायत में 1/3 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं । कुछ राज्य जहां महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत सीटें पहले से ही आरक्षित हैं , वे हैं बिहार , उत्तराखण्ड , मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश ।

❇️ भारत सरकार के द्वारा नारी असमानता को दूर करने के लिए उठाए गए कदम  :-

  • दहेज को अवैध घोषित करना ।
  • पारिवारिक सम्पत्तियों में स्त्री पुरुष को बराबर हक ।
  • कन्या भ्रूण हत्या को कानूनन अपराध घोषित करना ।
  • समान कार्य के लिए समान पारिश्रमिक का प्रावधान |
  • नारी शिक्षा पर विशेष जोर देना ।
  • बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओं जैसी योजना ।

❇️ धर्म को राजनीति से कभी अलग नहीं किया जा सकता । महात्मा गाँधी ने ऐसा क्यों कहा ?

🔹 गांधी जी के अनुसार धर्म , हिंदू धर्म या इस्लाम जैसे किसी भी धर्म विशेष – , से संबंधित नहीं था , लेकिन नैतिक मूल्य जो सभी धर्मों को सूचित करते हैं । राजनीति को धर्म से लिए गए नैतिक मूल्यों द्वारा निर्देशित होना चाहिए ।

❇️ पारिवारिक कानून :-

🔹 विवाह , तलाक , गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों से संबंधित कानून ।

❇️ साम्प्रदायिकता :-

🔹 जब किसी धर्म के मानने वाले लोग अपने धर्म को दूसरों के धर्मों से श्रेष्ठ समझने लगते हैं ।

❇️ साम्प्रदायिक राजनीति के विभिन्न रूप :-

  • कट्टर पंथी विचारधारा वाले लोग ।
  • धार्मिक आधार पर मतों का ध्रुवीकरण ।
  • धर्म के आधार पर लोगों को चुनाव में प्रत्याशी घोषित करना ।
  • साम्प्रदायिक हिंसा और खून खराबा ।
  • साम्प्रदायिक दिशा में राजनीति की गतिशीलता ।
  • साम्प्रदायिकता के आधार पर राजनीतिक दलों का अलग – अलग खेमों में बँट जाना । जैसे – आयरलैंड में नेशलिस्ट और यूनियनिस्ट पार्टी ।

❇️ साम्प्रदायिकता को दूर करने की विधियाँ :-

🔶 शिक्षा द्वारा :- शिक्षा के पाठ्यक्रम में सभी धर्मों की अच्छा है बताया जाए और विद्यार्थियों को सहिष्णुता एवं सभी धर्मों के प्रति आदर भाव सिखाया जाए ।

🔶 प्रचार द्वारा :- समाचार – पत्र रेडियो टेलीविजन आदि से जनता को धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा दी जाए ।

❇️ धर्मनिरपेक्षता :-

🔹 ऐसी व्यवस्था जिसमें राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता । सभी धर्मों को एक समान महत्व दिया जाता है तथा नागरिकों को किसी भी धर्म को अपनाने की आजादी होती है ।

❇️ धर्मनिरपेक्ष शासन :-

भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता ।

किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की आजादी ।

धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी तरह के भेदभाव को अवैधानिक घोषित ।

शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार ।

संविधान में किसी भी तरह के जातिगत भेदभाव का निषेध किया गया है ।

❇️ भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य बनाने वाले विभिन्न प्रावधान :-

भारत का कोई राजकीय धर्म नहीं है ।

भारत में सभी धर्मों को एक समान महत्व दिया गया है ।

प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता है ।

भारतीय संविधान धार्मिक भेदभाव को असंवैधानिक घोषित करता है ।

❇️ जातिवाद :-

🔹 जाति के आधार पर लोगों में भेदभाव करना ।

❇️ वर्ण व्यवस्था :-

🔹 विभिन्न जातीय समूहों का समाज में पदानुक्रम ।

❇️ आधुनिक भारत में जाति और वर्ण व्यवस्था के कारण हुए परिवर्तन  :-

  • आर्थिक विकास
  • बड़े पैमाने पर शहरीकरण
  • साक्षरता और शिक्षा का विकास
  • व्यावसायिक गतिशीलता
  • गांव में जमींदारों की स्थिति का कमजोर होना ।

❇️ राजनीति में जाति :-

चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखना ।

समर्थन हासिल करने के लिए जातिगत भावनाओं को उकसाना ।

देश के किसी भी एक संसदीय चुनाव क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत नहीं है ।

कोई भी पार्टी किसी एक जाति या समुदाय के सभी लोगों का वोट हासिल नहीं कर सकती ।

❇️ राजनीति जाति व्यवस्था और जाति की पहचान को कैसे प्रभावित करती है ?

प्रत्येक जाति समूह पड़ोसी जातियों या उप – जातियों को अपने भीतर समाहित करके बड़ा बनने का प्रयास करता है , जिन्हें पहले इससे बाहर रखा गया था ।

अन्य जातियों के साथ गठबंधन में प्रवेश करने के लिए जाति समूह की आवश्यकता होती है ।

राजनीतिक क्षेत्र में नए तरह के जातियों के समूह जैसे पिछड़े और अगड़े जाति समूह आ गए हैं ।

❇️ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं किये जा सकते ( कारण ) :-

मतदाताओं में जागरूकता – कई बार मतदाता जातीय भावना से ऊपर उठकर मतदान करते हैं ।

मतदाताओं द्वारा अपने आर्थिक हितों और राजनीतिक दलों को प्राथमिकता ।

किसी एक संसदीय क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत न होना ।

मतदाताओं द्वारा विभिन्न आधारों पर मतदान करना ।

❇️ जाति पर विशेष ध्यान देने से राजनीति में नकारात्मक परिणाम :-

  • यह गरीबी , विकास और भष्टाचार जैसे अन्य महत्व के मुद्दों से ध्यान हटा सकता है ।
  • जातीय विभाजन से तनाव , संघर्ष और यहां तक कि हिंसा भी होती है ।

❇️ जातिगत असामनता :-

🔹 जाति के आधार पर आर्थिक विषमता अभी भी देखने को मिलती है । ऊँची जाति के लोग सामन्यतया संपन्न होते है । पिछड़ी जाति के लोग बीच में आते हैं , और दलित तथा आदिवासी सबसे नीचे आते हैं । सबसे निम्न जातियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है ।

❇️ अनुसूचित जातियाँ :-

🔹 वे जातियाँ जो हिन्दू सामाजिक व्यवस्था में उच्च जातियों से अलग और अछूत मानी जाती हैं तथा जिनका अपेक्षित विकास नहीं हुआ है । अनुसूचित जातियों का प्रतिशत 16.2 प्रतिशत है ।

❇️ अनुसूचित जनजातियाँ :-

🔹 ऐसा समुदाय जो साधारणतया पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों में रहते हैं और जिनका बाकी समाज से अधिक मेलजोल नहीं है । साथ ही उनका विकास नहीं हुआ है । अनुसूचित जनजातियों का प्रतिशत 8.2 प्रतिशत है ।

❇️ भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी है :-

आज भी हमारे देश में कुछ जातियों के साथ अछूतों जैसा बर्ताव किया जाता है ।

आज भी अधिकतर लोग अपनी जाति या कबीले में विवाह करते हैं ।

कुछ जातियाँ अधिक उन्नत हैं तो कुछ खास जातियाँ अत्यधिक पिछड़ी हुई ।

कुछ जातियों का अभी भी शोषण हो रहा है ।

चुनाव अथवा मंत्रिमंडल के गठन में जातीय समीकरण को ध्यान में रखना ।


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