10 Class भूगोल Chapter 3 जल संसाधन Notes in hindi
जल संसाधन class 10 notes, Class 10 geography chapter 3 notes in hindi. जिसमे भारत में जल , बाँध , बहु – उद्देशीय नदी परियोजनाएँ , बहु – उद्देशीय नदी परियोजनाओं के उद्देश्य , बहु – उद्देशीय नदी परियोजनाओं की खामियाँ , बहु – उद्देशीय परियोजनाओं के विरोध में आन्दोलन , वर्षा जल संग्रहण , टाँका आदि के बारे में पड़ेंगे ।
Class 10 भूगोल Chapter 3 जल संसाधन Notes in hindi
📚 अध्याय = 3 📚
💠 जल संसाधन 💠
❇️ जल के कुछ रोचक तथ्य :-
🔹 दुनिया में पानी की कुल मात्रा का 96.5 प्रतिशत समुद्र के रूप में मौजूद है ओर केवल 2.5 प्रतिशत मीठे पानी के रूप में अनुमानित है ।
🔹 भारत को वैश्विक वर्षा का लगभग 4 प्रतिशत प्राप्त होता है और पानी की प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष उपलब्धता के मामले में दुनिया में 133 वें स्थान पर है ।
🔹 ऐसी आशंका व्यक्त की जाती है कि 2025 तक , भारत के बड़े हिस्से पानी की कमी वाले देशों या क्षेत्रों में शामिल हो जाएंगे ।
❇️ जल दुर्लभता :-
🔹 जल दुर्लभता का अर्थ है पानी की कमी होना ।
❇️ जल दुर्लभता के कारण :-
बड़ी आबादी
सिंचित क्षेत्रों का विस्तार करने के लिए जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है ।
बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के साथ पानी की अधिक माँग ।
विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच पानी की असमान पहुंच ।
उद्योगों द्वारा पानी का अत्यधिक उपयोग ।
शहरी क्षेत्रों में पानी का अधिक दोहन ।
❇️ औद्योगीकरण तथा शहरीकरण किस प्रकार जलदुर्लभता के लिए उत्तरदायी है ?
- स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में तेजी से औद्योगीकरण ।
- उद्योगों की बढ़ती संख्या के कारण अलवणीय जल का अत्यधिक प्रयोग ।
- शहर की बढ़ती आबादी तथा शहरी जीवन शैली के कारण जल ऊर्जा की आवश्यकता में तीव्र वृद्धि ।
- शहरों तथा गाँवों में जल संसाधनों का अतिशोषण ।
❇️ बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ :-
🔹 वे कंपनियाँ जिनके उद्योग संस्थान एक से अधिक देशों में कार्य करते हैं तथा अनेक देशों में पूंजी निवेश करते हैं तथा अधिक लाभ अर्जित करते हैं ।
❇️ जल विद्युत :-
🔹 ऊँचे स्थानों से जल धारा को नीचे गिराकर उत्पन्न की गई विद्युत ।
❇️ एक नवीकरणीय संसाधन होते हुए भी जल के संरक्षण तथा प्रबंधन की आवश्यकता क्यों है ?
- विश्व में केवल 2.5 प्रतिशत ही ताजा जल है ।
- जल संसाधनों का अति दोहन ।
- बढ़ती जनसंख्या , अधिक मांग और असमान पहुँच ।
- बढ़ता शहरी करण ।
- औद्योगीकीकरण ।
❇️ प्राचीन भारत में जलीय कृतियाँ :-
🔹 ईसा से एक शताब्दी पहले इलाहाबाद के नजदीक श्रिगंवेरा में गंगा नदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था ।
🔹 चन्द्रगुप्त मौर्य के समय बृहत् स्तर पर बाँध , झील और सिंचाई तंत्रों का निर्माण करवाया गया ।
🔹 कलिंग ( ओडिशा ) , नागार्जुनकोंडा ( आंध्र प्रदेश ) बेन्नूर ( कर्नाटक ) और कोल्हापुर ( महाराष्ट्र ) में उत्कृष्ट सिंचाई तंत्र होने के सबूत मिलते हैं ।
🔹 अपने समय की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक , भोपाल झील , 11 वीं शताब्दी में बनाई गई ।
🔹 14 वीं शताब्दी में इल्तुतमिश ने दिल्ली में सिरी फोर्ट क्षेत्र में जल की सप्लाई के लिए हौज खास ( एक विशिष्ट तालाब ) बनवाया ।
❇️ बहुउद्देशीय परियोजनाएँ :-
🔹 नदियों पर बाँध बनाकर एक बार में अनेक उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है ।
❇️ बाँध :-
🔹 बहते जल को रोकने , दिशा देने या बहाव कम करने के लिए खड़ी की गई बाधा है जो आमतौर पर जलाशय , झील अथवा जलभरण बनाती है ।
❇️ बाँधों से होने वाले लाभ :-
- सिंचाई ।
- विद्युत उत्पादन ।
- घरेलू तथा औद्योगिक आवश्यकता हेतु जल आपूर्ति ।
- बाढ़ नियंत्रण ।
- मनोरंजन तथा पर्यटन ।
- मत्स्य पालन ।
❇️ बांधों को अब बहुउद्देशीय परियोजना क्यों कहा जाता हैं ?
बाँध से एकत्र जल का उपयोग एक दूसरे पर निर्भर हैं ।
बांधों का निर्माण बाढ़ नियंत्रण , सिंचाई , बिजली उत्पादन ओर वितरण के लिए किया जाता हैं ।
जल , वनस्पति और मिट्टी के सरंक्षण के लिए बांधों का निर्माण किया जाता हैं ।
यह पर्यटन को बढ़वा देने में भी मदद करता हैं ।
❇️ जवाहर लाल नेहरू ने ‘ बाँधों को आधुनिक भारत के मंदिर ‘ क्यों कहा है ?
🔹 बाँधों से अनेक लाभ हैं । ये विकास में योगदान करते हैं इसलिए नेहरू जी ने इन्हें आधुनिक भारत के मंदिर कहा था ।
❇️ भारत में बहुउद्देशीय परियोजनाओं :-
स्वतंत्रता के बाद उनके एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन दृष्टिकोण के साथ लॉन्च किया गया ।
जवाहरलाल नेहरू ने बांधों को गर्व से आधुनिक भारत के मंदिरों के रूप में घोषित किया ।
यह कृषि और ग्राम अर्थव्यवस्था के विकास को तेजी से औद्योगिकीकरण और शहरी अर्थव्यवस्था के विकास के साथ एकीकृत करेगा ।
❇️ बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना :-
🔹 नदी पर बाँध बनाकर इससे अनेक प्रकार के उद्देश्यों को पूरा करना , बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना कहलाता है ।
❇️ बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना के उद्देश्य :-
- जल विद्युत उत्पादन
- सिंचाई
- घरेलू व औद्योगिक जल आपूर्ति
- नौचालन व पर्यटन
- बाढ़ नियंत्रण
- मछली पालन
❇️ बहु – उद्देशीय नदी परियोजनाओं के लाभ :-
- सिंचाई
- विद्युत उत्पादन
- बाढ नियंत्रण
- मत्स्य प्रजनन
- अंतदेर्शीय नौवहन
- घरेलू और औद्योगिक उपयोग
❇️ बहुउद्देशीय नदी परियोजना की आलोचना :-
नदी के प्राकृतिक प्रवाह को प्रभावित करते है और जलाशय के अत्यधिक अवसादन एकत्र होता है ।
नदी की जलीय जीवन की नकारात्मक तरीके से प्रभावित करता है ।
स्थानीय समुदाय का बड़े पैमाने पर विस्थापन ।
बाढ़ के मैदान पर बनाए गए जलाशय मौजूद वनस्पति को डूबा देंगे और एक समय के बाद मृदा का क्षरण करेंगे ।
❇️ नर्मदा बचाओ आंदोलन :-
नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध निर्माण के विरोध में था ।
आंदोलन गैर सरकारी संगठन ( NGO ) द्वारा संचालित ।
जनजातीय लोगों , किसानों , पर्यावरणविदों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का सरदार सरोवर परियोजना के विरोध में लामबंद होना ।
आरंभ में यह आंदोलन जंगलों के बाँध के पानी में डूबने के मुद्दे पर केंद्रित ।
बाद में इसका लक्ष्य विस्थापितों का पुनर्वास करना हो गया ।
❇️ भूमिगत जल :-
🔹 मृदा के नीचे बिछे हुए शैल आस्तरण छिद्रों और परतों में एकत्र होने वाला जल ।
❇️ वर्षा जल संग्रहण :-
🔹 एक तकनीक जिसमें वर्षा जल को खाली स्थानों , घरों में टैंक में , बेकार पड़े कुएँ में भरा जाता है । बाद में इसका प्रयोग किया जाता है ।
🔹 पर्वतीय क्षेत्रों में ‘ गुल ‘ तथा ‘ कुल ‘ जैसी वाहिकाओं से नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों की सिचांई ।
🔹 राजस्थान में पीने का जल एकत्रित करने के लिए छत वर्षा जल संग्रहण आम तकनीक है ।
❇️ वर्षा जल संचयन की विधियां :-
पहाड़ी क्षेत्रों में , लोगों ने कृषि के लिए गुल और कुल जैसी वाहिकाएं बनायीं है । लोगों ने पश्चिमी हिमालय में गुल और कुल जैसी वाहिकाएं बनायी ।
पश्चिम बंगाल में बाढ़ के दौरान बाढ़ जल वाहिकाएँ बनाते हैं ।
राजस्थान के शुष्क और अर्ध – शुष्क क्षेत्रों में , कृषि क्षेत्रों को बरसाती भंडारण संरचनाओं में परिवर्तित किया गया ।
शुष्क तथा अर्ध शुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल एकत्रित करने के लिए गड्ढ़ों का निर्माण ।
छत पर वर्षा जल संचयन ।
बीकानेर , फलौदी और बाड़मेर में पीने हेतु भूमिगत टैंक या टाँका ।
मेघालय में बॉस की ड्रिप सिंचाई प्रणाली ।
❇️ ताजे पानी के स्त्रोत :-
- वर्षा से ।
- सतह जल – नदियों , झीलों आदि में ।
- भूजल – भूमि में संग्रहित जल , जो बारिश से रिचार्ज हो जाता है ।
❇️ बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली :-
🔹 नदियों व झरनों के जल को बाँस के बने पाइपों द्वारा एकत्रित करके सिंचाई करना बाँस ड्रिप सिचांई कहलाता है ।
❇️ प्राचीन भारत में जल संरक्षण :-
पहली शताब्दी ईसा पूर्व में , इलाहाबाद में परिष्कृत जल संचयन प्रणाली थी ।
चंद्रगुप्त मौर्य के समय में बाँध , झीलें और सिंचाई प्रणालियों बड़े पैमाने पर बनायी गयी थीं ।
ओडिशा के कलिंग , नागार्जुनकोंडा में परिष्कृत सिंचाई कार्य पाए गए हैं , आंध्र प्रदेश , कर्नाटक में बेन्नूर और महाराष्ट्र में कोल्हापुर ।
11 वीं शताब्दी में बनी भोपाल झील अपने समय की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक थी ।
14 वीं शताब्दी में , इल्तुतमिश ने पानी की आपूर्ति के लिए दिल्ली के हौज खास में एक टैंक का निर्माण किया सिरी किला क्षेत्र में ।
❇️ टाँका :-
🔹 टाँका में वर्षा जल अगली वर्षा ऋतु तक संग्रहित किया जा सकता है । यह इसे जल की कमी वाली ग्रीष्म ऋतु तक पीने का जल उपलब्ध करवाने वाला जल स्रोत बनाता है ।
❇️ पालर पानी :-
🔹 वर्षा का पानी जो भूमिगत टैंकों में जमा होता है पीने योग्य पानी हैं । इसे पालर पानी कहा जाता है ।
❇️ राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में इसका महत्व :-
- यह पेयजल का मुख्य स्त्रोत है , जब अन्य सभी स्त्रोत सूख गए हों ।
- इसे पेयजल का शुद्धतम रूप माना जाता हैं ।
- गर्मियों में , ये टैंक भूमिगत कमरों और उनसे जुड़े कमरों को ठंडा , साफ रखते हैं । ,
❇️ भारत देश में जल का अभाव बढ़ने के कारण :-
- भारत मानसूनी जलवायु का देश ।
- कई बार मानसून असफल होने से जल की कमी बढ़ रही है ।
- सिंचाई के जल की मांग में तीव्र वृद्धि ।
- औद्योगिक क्रियाओं के कारण भूमिगत जल स्तर का गिरना ।
- शहरीकरण की गति में वृद्धि के कारण जल संसाधनों पर बढ़ता दबाव ।
- बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के कारण ।
❇️ अत्यधिक सिंचाई के नकारात्मक प्रभाव :-
- इससे मिट्टी के लवणीकरण जैसे बड़े पारिस्थितिक परिणाम हो सकते हैं ।
- इससे मिट्टी की उर्वरता में कमी ।
- इससे पानी की कमी हो जाती हैं ।
Comments are closed