Class 9 Geography || Chapter 3 अपवाह || Drainage Notes In Hindi
Class 9 Geography Chapter 3 अपवाह Drainage Notes In Hindi
📚 अध्याय = 3 📚
💠 अपवाह 💠
❇️ अपवाह :-
🔹 ” अपवाह ” एक क्षेत्र के नदी तंत्र की व्याख्या के लिए उपयोग होता है ।
❇️ अपवाह द्रोणी :-
🔹 एक नदी तंत्र द्वारा जिस क्षेत्र का जल प्रवाहित होता है उसे अपवाह द्रोणी कहते हैं ।
❇️ विश्व की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी :-
🔹 विश्व की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी अमेज़न नदी की है ।
❇️ भारत की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी :-
🔹 भारत की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी गंगा नदी की है ।
❇️ जल विभाजक :-
🔹 कोई भी ऊँचा क्षेत्र , जैसे- पर्वत या उच्च भूमि दो पड़ोसी अपवाह द्रोणियों को एक दूसरे से अलग करती है । इस प्रकार की उच्च भूमि को जल विभाजक कहते हैं ।
❇️ भारत में अपवाह तंत्र :-
🔹 भारत के अपवाह तंत्र का नियंत्रण मुख्यतः भौगोलिक आकृतियों के द्वारा होता है । इस आधार पर भारतीय नदियों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है :-
हिमालय की नदियाँ
प्रायद्वीपीय नदियाँ
❇️ हिमालय की नदियाँ :-
हिमालय की अधिकतर नदियाँ बारहमासी नदियाँ होती हैं ।
इनमें वर्ष भर पानी रहता है , क्योंकि इन्हें वर्षा के अतिरिक्त ऊँचे पर्वतों से पिघलने वाले हिम द्वारा भी जल प्राप्त होता है ।
हिमालय की दो मुख्य नदियाँ सिंधु तथा ब्रह्मपुत्र इस पर्वतीय श्रृंखला के उत्तरी भाग से निकलती हैं ।
इन नदियों ने पर्वतों को काटकर गॉर्जों का निर्माण किया है ।
हिमालय की नदियाँ अपने उत्पत्ति के स्थान से लेकर समुद्र तक के लंबे रास्ते को तय करती हैं ।
ये अपने मार्ग के ऊपरी भागों में तीव्र अपरदन क्रिया करती हैं तथा अपने साथ भारी मात्रा में सिल्ट एवं बालू का संवहन करती हैं ।
मध्य एवं निचले भागों में ये नदियाँ विसर्प , गोखुर झील तथा अपने बाढ़ वाले मैदानों में बहुत – सी अन्य निक्षेपण आकृतियों का निर्माण करती हैं ।
ये पूर्ण विकसित डेल्टाओं का भी निर्माण करती हैं ।
❇️ हिमालय की प्रमुख नदियाँ :-
सिंधु नदी तंत्र
गंगा नदी तंत्र
ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र
🔹 सिंधु , गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय से निकलने वाली प्रमुख नदियाँ हैं । ये नदियाँ लंबी हैं तथा अनेक महत्त्वपूर्ण एवं बड़ी सहायक नदियाँ आकर इनमें मिलती हैं । किसी नदी तथा उसकी सहायक नदियों को नदी तंत्र कहा जाता है ।
❇️ सिंधु नदी तंत्र :-
सिंधु नदी का उद्गम मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में है ।
पश्चिम की ओर बहती हुई यह नदी भारत में लद्दाख से प्रवेश करती है ।
इस भाग में यह एक बहुत ही सुंदर दर्शनीय गार्ज का निर्माण करती है ।
सिंधु नदी बलूचिस्तान तथा गिलगित से बहते हुए अटक में पर्वतीय क्षेत्र से बाहर निकलती है ।
🔶 इसकी सहायक नदियाँ :- इस क्षेत्र में बहुत सी सहायक नदियाँ जैसे जास्कर , नूबरा , श्योक तथा हुंजा इस नदी में मिलती हैं ।
🔶 सिंधु नदी की लंबाई :- 2,900 कि० मी० लंबी सिंधु नदी विश्व की लंबी नदियों में से एक है ।
अंत में कराची से पूर्व की ओर अरब सागर में मिल जाती है ।
❇️ गंगा नदी तंत्र :-
🔶 लंबाई :- गंगा की लंबाई 2,500 कि ० मी ० से अधिक है ।
इसकी मुख्य धारा ‘ भागीरथी ‘ गंगोत्री हिमनद से निकलती है ।
अलकनंदा अतराखण्ड के देवप्रयाग में इससे मिलती है ।
हरिद्वार में गंगा पर्वतीय भाग छोड़कर मैदान में आती है ।
हिमालय से निकलने वाली बहुत सी नदियाँ आकर गंगा में मिलती हैं यमुना , घाघरा , गंडक , कोसी
❇️ ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र :-
ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत की मानसरोवर झील के पूर्व तथा सिंधु एवं सतलुज के स्रोतों के काफी नजदीक से निकलती है ।
इसकी लंबाई सिंधु से कुछ अधिक है , परंतु इसका अधिकतर मार्ग भारत से बाहर स्थित है ।
यह हिमालय के समानांतर पूर्व की ओर बहती है । नामचा बारवा शिखर ( 7,757 मीटर ) के पास पहुँचकर यह अंग्रेजी के यू ( U ) अक्षर जैसा मोड़ बनाकर भारत के अरुणाचल प्रदेश में गॉर्ज के माध्यम से प्रवेश करती है । यहाँ इसे दिहाँग के नाम से जाना जाता है ।
ब्रह्मपुत्र को तिब्बत में सांगपो एवं बांग्लादेश जमुना कहा जाता है ।
🔶 इसकी सहायक नदियाँ :- दिबांग , लोहित , केनुला एवं दूसरी सहायक नदियाँ इससे मिलकर असम में ब्रह्मपुत्र का निर्माण करती हैं ।
ब्रह्मपुत्र नदी में तिब्बत में गाद कम होती है क्योंकि तिब्बत एक शुष्क तथा शीत क्षेत्र है ।
❇️ सुन्दर वन डेल्टा :-
🔹 विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा सुंदर वन है , सुन्दर वन डेल्टा का नाम यहाँ पाए जाने वाले सुंदरी के पेड़ के कारण पड़ा है ।
❇️ प्रायद्वीपीय नदियाँ :-
अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी होती हैं , क्योंकि इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है ।
शुष्क मौसम में बड़ी नदियों का जल भी घटकर छोटी – छोटी धाराओं में बहने लगता है ।
हिमालय की नदियों की तुलना में प्रायद्वीपीय नदियों की लंबाई कम तथा छिछली हैं ।
फिर भी इनमें से कुछ केंद्रीय उच्चभूमि से निकलती हैं तथा पश्चिम की तरफ बहती हैं ।
प्रायद्वीपीय भारत की अधिकतर नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलती हैं तथा बंगाल की खाड़ी की तरफ बहती हैं ।
❇️ प्रायद्वीपीय की प्रमुख नदियाँ :-
नर्मदा द्रोणी
पानी द्रोणी
गोदवरी द्रोणी
महानदी द्रोणी
कृष्णा द्रोणी
कावेरी द्रोणी
❇️ नर्मदा द्रोणी :-
नर्मदा का उद्गम मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ी के निकट है ।
यह पश्चिम की ओर एक भ्रंश घाटी में बहती है ।
समुद्र तक पहुँचने के क्रम में यह नदी बहुत से दर्शनीय स्थलों का निर्माण करती है ।
जबलपुर के निकट संगमरमर के शैलों में यह नदी गहरे गार्ज से बहती है तथा जहाँ यह नदी तीव्र ढाल से गिरती है , वहाँ ‘ धुँआधार प्रपात ‘ का निर्माण करती है ।
🔶 इसकी सहायक नदियाँ :- नर्मदा की सभी सहायक नदियाँ बहुत छोटी हैं , इनमें से अधिकतर समकोण पर मुख्य धारा से मिलती हैं ।
नर्मदा द्रोणी मध्य प्रदेश तथा गुजरात के कुछ भागों में विस्तृत है ।
❇️ तापी द्रोणी :-
तापी का उद्गम मध्य प्रदेश के बेतुल जिले में सतपुड़ा की श्रृंखलाओं में है ।
यह भी नर्मदा के समानांतर एक भ्रंश घाटी में बहती है , लेकिन इसकी लंबाई बहुत कम है ।
इसकी द्रोणी मध्यप्रदेश , गुजरात तथा महाराष्ट्र राज्य में है ।
अरब सागर तथा पश्चिमी घाट के बीच का तटीय मैदान बहुत अधिक संकीर्ण है । इसलिए तटीय नदियों की लंबाई बहुत कम है ।
पश्चिम की ओर बहने वाली मुख्य नदियाँ साबरमती , माही , भारत पुजा तथा पेरियार हैं ।
❇️ गोदावरी द्रोणी :-
गोदावरी सबसे बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है ।
यह महाराष्ट्र के नासिक जिले में पश्चिम घाट की ढालों से निकलती है ।
यह बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है ।
प्रायद्वीपीय नदियों में इसका अपवाह तंत्र सबसे बड़ा है ।
इसकी द्रोणी महाराष्ट्र ( नदी द्रोणी का 50 प्रतिशत भाग ) , मध्य प्रदेश , ओडिशा तथा आंध्र प्रदेश में स्थित है ।
🔶 लंबाई :- इसकी लंबाई लगभग 1,500 कि० मी० है ।
🔶 इसकी सहायक नदियाँ :- गोदावरी में अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं , जैसे पूर्णा , वर्धा , प्रान्हिता , मांजरा , वेनगंगा तथा पेनगंगा । इनमें से अंतिम तीनों सहायक नदियाँ बहुत बड़ी हैं ।
बड़े आकार और विस्तार के कारण इसे ‘ दक्षिण गंगा ‘ के नाम से भी जाना जाता है ।
❇️ महानदी द्रोणी :-
महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ की उच्चभूमि से है तथा यह ओडिशा से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है ।
🔶 लंबाई :- इस नदी की लंबाई 860 कि० मी० है ।
इसकी अपवाह द्रोणी महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़ , झारखंड तथा ओडिशा में है ।
❇️ कृष्णा द्रोणी :-
महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में महाबालेश्वर के निकट एक स्रोत से निकलकर कृष्णा लगभग 1,400 कि ० मी ० बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है ।
🔶 इसकी सहायक नदियाँ :- तुंगभद्रा , कोयना , घाटप्रभा , मुसी तथा भीमा इसकी कुछ सहायक नदियाँ हैं ।
इसकी द्रोणी महाराष्ट्र , कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में फैली है ।
❇️ कावेरी द्रोणी :-
कावेरी पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी श्रृंखला से निकलती है तथा तमिलनाडु में कुडलूर के दक्षिण में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है ।
🔶 लंबाई :- इसकी लंबाई 760 कि० मी० है ।
🔶 इसकी सहायक नदियाँ :- इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं अमरावती , भवानी , हेमावती तथा काबिनि ।
इसकी द्रोणी तमिलनाडु , केर तथा कर्नाटक में विस्तृत है ।
❇️ झील :-
🔹 पृथ्वी की सतह के गर्त वाले भागों में जहाँ जल जमा हो जाता है , उसे झील कहते हैं ।
🔹 बड़े आकार वाली झीलों को समुद्र कहा जाता है । जैसे :- केस्पियन , मृत तथा अरल सागर ।
❇️ झीलों की उपयोगिता :-
बाढ़ की रोकथाम
नदी के बद्यव को सुचारु बनाना
जल विद्युत का निर्माण
जलवायु को सामान्य बनाना
जलीय पारितंत्र को संतुलित करना
पर्यटन को बढ़ावा
❇️ भारत में झीलें :-
🔹 भारत में भी बहुत – सी झीलें हैं । ये एक दूसरे से आकार तथा अन्य लक्षणों में भिन्न हैं । अधिकतर झीलें स्थायी होती हैं तथा कुछ में केवल वर्षा ऋतु में ही पानी होता है , जैसे – अंतर्देशीय अपवाह वाले अर्धशुष्क क्षेत्रों की द्रोणी वाली झीलें ।
🔹 यहाँ कुछ ऐसी झीलें हैं , जिनका निर्माण हिमानियों एवं बर्फ चादर की क्रिया के फलस्वरूप हुआ है । जबकि कुछ अन्य झीलों का निर्माण वायु , नदियों एवं मानवीय क्रियाकलापों के कारण हुआ है ।
❇️ भारत में मीठे पानी की प्राकृतिक झीलें :-
🔹 वुलर , डल , भीमताल , नैनीताल , लोकताक तथा बड़ापानी हैं ।
❇️ भारत में मानव निर्मित झीले :-
🔹 गोविन्द सागर , राणा प्रताप सागर , निज़ाम सागर , महत्वपूर्ण हैं ।
❇️ नदियों का अर्थव्यवस्था में महत्त्व :-
🔹 भारत जैसे देश के लिए , जहाँ कि अधिकांश जनसंख्या जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है , वहाँ सिंचाई , नौसंचालन , जलविद्युत निर्माण में नदियों का महत्त्व बहुत अधिक है ।
❇️ नदी प्रदूषण :-
🔹 नदी जल की घरेलू , औद्योगिक तथा कृषि में बढ़ती माँग के कारण , इसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है । इसके परिणामस्वरूप , नदियों से अधिक जल की निकासी होती है तथा इनका आयतन घटता जाता है ।
🔹 दूसरी ओर , उद्योगों का प्रदूषण तथा अपरिष्कृत कचरे नदी में मिलते रहते हैं । यह केवल जल की गुणवत्ता को ही नहीं , बल्कि नदी के स्वतः स्वच्छीकरण की क्षमता को भी प्रभावित करता है ।
❇️ नदी प्रदूषण से बचाव :-
🔹 नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण इनको स्वच्छ बनाने के लिए अनेक कार्य योजनाएँ लागू की गई हैं ।
❇️ राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना ( एनआरसीपी ) :-
🔹 देश में नदी सफाई कार्यक्रम का शुभारंभ 1985 में गंगा एक्शन प्लान ( जीएपी ) के साथ आरंभ हुआ । वर्ष 1995 में राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना ( एनआरसीपी ) के तहत अन्य नदियों को जोड़ने के लिए गंगा कार्य योजना का विस्तार किया गया । नदियाँ देश में जल का प्रमुख स्रोत हैं । एनआरसीपी का उद्देश्य नदियों के जल में प्रदूषण को कम करके जल की गुणवत्ता में सुधार करना है ।
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