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पाठ – 8

किसान जमींदार और राज्य

In this post we have given the detailed notes of class 12 History Chapter 8 Kishaan Jamindaar Aur Rajya (Peasants, Zamindars and the State Agrarian Society and the Mughal Empire) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.

इस पोस्ट में क्लास 12 के इतिहास के पाठ 8 किसान जमींदार और राज्य (Peasants, Zamindars and the State Agrarian Society and the Mughal Empire) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं इतिहास विषय पढ़ रहे है।

 

किसान जमींदार और राज्य

किसान और कृषि उत्पादन  

  • समाज की बुनियादी कई गांव थी जिसमें किसान रहते थे।
  • किसान साल भर खेत में फसल की पैदावार अच्छी हो उसके लिए काम करते थे।
  • जैसे जमीन की जुताई, बीज बोना और फसल पकने पर फसल की कटाई करना।
  • इसके अलावा भी किसान अन्य वस्तुओं का उत्पादन करते थे जैसे शक्कर, तेल इत्यादि।
  • सभी जगह खेती एक समान नहीं होती थी इसका मुख्य कारण कई इलाके सूखे होते थे और पथरीले भी और कई इलाके उपजाऊ

स्रोतों की तलाश

  • किसान अपने बारे में खुद नहीं लिखते थे इसलिए हमें उनकी जानकारी कम मिलती है।
  • 16 व 17 वी सदी के कृषि इतिहास को समझने के लिए हमारे मुख्य स्रोत एक ऐतिहासिक ग्रंथ “आईन- ए- अकबरी था।
  • जिसे अकबर के दरबार में अबुल फजल ने लिखा था।
  • खेतों और किसानों का लेखा-जोखा हमें इसी ग्रंथ से प्राप्त होता है।
  • आईन का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य का एक ऐसा ढांचा पेश करना था जिसमें सभी सत्ताधारी वर्ग सामाजिक मेलजोल बनाकर रहते हो।
  • मुगल राज्य के खिलाफ अगर कोई भी बगावत सफल नहीं हो पाती थी।
  • कुछ स्रोत ऐसे भी मिले हैं जो मुगल दरबार से दूर लिखे गए थे।
  • 17-18 वीं शताब्दी के गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से मिलने वाले यह दस्तावेज हमें सरकार की आमदनी की विस्तृत जानकारी देते है।
  • कुछ अन्य स्रोत भी मिले हैं जिनसे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किसान राज्य को किस नजरिए से देखते थे।
  • और राज्य से उन्हें कैसी न्याय की उम्मीद थी।

सिंचाई और तकनीक 

  • मजदूरों की मौजूदगी और किसानों की गतिशीलता की वजह से कृषि का लगातार विस्तार हुआ।
  • खेती का प्राथमिक उद्देश्य लोगों का पेट भरना था।
  • रोजमर्रा की जरूरतें जैसे चावल, गेहूं, ज्वार इत्यादि फसलें उगाई जाती थी।
  • जिन इलाकों में प्रतिवर्ष 40 इंच से ज्यादा बारिश होती थी वहां चावल की खेती उगाई जाती थी।
  • और कम बारिश वाले इलाकों में गेहूं, ज्वार, बाजरे की खेती प्रचलित थी।
  • सिंचाई कार्य को राज्य की मदद भी मिलती थी।
  • उत्तर- भारत में राज्य ने कई नए नहरे व नाले खुदवाए और पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई।
  • जैसे कि शाहजहां के शासनकाल में पंजाब में “शाह नहर” बनवाया गया।
  • किसान खेती के लिए हल, पशुओं और कुदालो का भी प्रयोग करते थे

पंचायते और मुखिया 

  • पंचायत आमतौर पर गांव के महत्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी पुश्तैनी संपत्ति होती थी।
  • जिस गांव में कई जाति के लोग रहते थे वहां पंचायत में भी विविधता पाई जाती थी।
  • गांव के छोटे बड़े झगड़ों का निपटारा इन पंचायतों के द्वारा की जाती थी।
  • और पंचायतों के फैसले को सबको मानना पड़ता था।
  • पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था जिसे मुकदम या मंडल भी कहते थे।
  • मुखिया का चुनाव गांव के बुजुर्गों द्वारा ही किया जाता था।
  • मुखिया अपने आधे पर तभी तक बना रहता था जब तक गांव के बुजुर्गों को उस पर भरोसा था।
  • मुखिया का काम गांव के आमदनी और खर्चों का हिसाब- किताब अपनी निगरानी में करना था।
  • पंचायत का खर्चा गांव के आम खजाने से चलता था जिसमें हर व्यक्ति अपना योगदान देता था।
  • दूसरी ओर इस कोष का इस्तेमाल बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदाओ से निपटने के लिए भी किया जाता था।
  • और गांव के समुदायक कार्य जैसे बांध बनाना, नहर खोदने के लिए भी किया जाता था।
  • पंचायत का एक बड़ा काम यह भी सुनिश्चित करना था कि गांव में रहने वाले अलग-अलग समुदाय के लोग अपनी अपनी हद में रहे।
  • गांव की शादियां मंडल के देखरेख में किया जाता था ताकि कोई जाति की अवहेलना ना करें।

ग्रामीण दस्तकार 

  • गांव के सर्वेक्षण और मराथाओ के दस्तावेजों से हमें यह पता चलता है कि उस समय गांव के दस्तकारों की काफी अधिक संख्या थी।
  • कहीं-कहीं तो कुल घरों के 25 फ़ीसदी घर दस्तकार थे।
  • कभी-कभी किसानों और दस्तकारों के बीच फर्क करना कठिन हो जाता था क्योंकि यह दोनों किस्म के काम करते थे दस्तकारी भी और किसानी भी।
  • जब किसानों के पास कोई काम नहीं होता था तो वह दस्तकारी का काम करते थे।
  • कुम्हार, लोहार, बढ़ई, नाई यहां तक कि सुनार जैसे ग्रामीण दस्तकार भी अपनी सेवाएं गांव के लोगों को देते थे।
  • और गांव वाले बदले में उन्हें फसल का एक भाग या बेकार जमीन का टुकड़ा दे देते थे।

कृषि समाज में महिलाएं

  • समाज में महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करती थी।
  • मर्द खेत जोतते थे और महिलाएं बुआई, निराई और कटाई के साथ-साथ पकी हुई फसल का दाना निकालने का काम करती थी।
  • जब छोटी- छोटी इकाइयों का और किसानों की व्यक्तिगत खेती का विकास हुआ तो लिंग का फर्क किया जाने लगा।
  • महिलाएं घर का काम करेगी और पुरुष बाहर का।
  • पश्चिम भारत में रजस्वला महिलाओं को हाल या कुम्हार का चाक छूने की इजाजत नहीं थी।
  • इसी तरह बंगाल में महिलाएं मासिक धर्म के समय “पान के बगान” में नहीं घुस सकती थी।
  • दस्तकारी के काम में भी महिलाओं का बहुत बड़ा हाथ था।
  • जाता था। और संपत्ति पर महिलाओं का भी बराबर का अधिकार होता था।
  • किसान और दस्तकार महिलाएं जरूरत पड़ने पर काम के लिए दूसरों के घर या बाजार भी जाया करती थी।
  • समाज में महिलाओं को महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में देखा जाता था क्योंकि महिलाएं बच्चे को जन्म दे सकती है।
  • कई ग्रामीण संप्रदायों में शादी के लिए “दुल्हन की कीमत” अदा करनी पड़ती थी, ना की दहेज।
  • घर का मुखिया मर्द होता था और बेवफाई के शक पर महिलाओं को भयानक दंड भी दिया

जंगल और कबीले

  • ग्रामीण भारत में बसे हुए लोगों की खेती के अलावा भी बहुत कुछ था।
  • उत्तर और उत्तर -पश्चिमी भारत की गहरी खेती वाले प्रदेशों को छोड़ दें तो जमीन के विशाल हिस्से जंगल झाड़ियों से भी रहे थे।
  • जंगलों में रहने वालों के लिए जंगली शब्द का इस्तेमाल किया जाता था।
  • इन शब्दों का प्रयोग उन लोगों के लिए किया जाता था जो जंगलों के उत्पादों, शिकारो, और स्थानांतरित खेती से अपना गुजारा करते थे।
    • यह लोग मौसम के मुताबिक काम करते थे :
    • बसंत में जंगलों के उत्पाद इकट्ठा करना।
    • गर्मियों में मछली पकड़ना
    • मॉनसून में खेती करना।
    • शरद में शिकार करना।

जमीदार

  • गांव में रहने वाले यह एक ऐसे तबके के लोग थे जिनकी कमाई खेती से आती थी, परंतु यह खेत में काम नहीं करते थे।
  • यह गांव के जमीदार होते थे और यह अपने जमीन के मालिक होते थे।
  • इनको ग्रामीण समाज में ऊंची हैसियत होने की वजह से कुछ खास सामाजिक और आर्थिक सुविधाएं मिली हुई थी।
  • जमीदारों की बढ़ी हुई हैसियत के पीछे एक कारण “जाति” और दूसरा कारण यह राज्यों को कुछ खास सेवाएं देते थे।
  • जमीदार अपने जमीन पर मजदूरों से काम करवाते थे वह स्वयं अपने जमीन पर काम नहीं करते थे।
  • जमीदार अपनी मर्जी के मुताबिक अपनी जमीन को बेच या दूसरों के नाम कर सकते थे।
  • जमीदारों का दूसरा मुख्य कार्य राज्य की ओर गांव वाले से “कर वसूल” ना था इसके बदले जमीदारों को वित्त मुआवजा मिलता था।
  • जमीदारों के पास अपनी सैन्य टुकड़ियों में भी होती थी।
  • जिनमें घुड़सवार, तोपखाने व पैदल सिपाही के जत्थे होते थे।

भू – राजस्व प्रणाली

  • जमीन से मिलने वाले राजस्व मुगल साम्राज्य की आर्थिक बुनियाद थी।
  • कृषि उत्पादन व राजस्व वसूली के लिए प्रशासनिक तंत्र बनाया गया था।
  • दीवान के ऊपर राज्य की वित्तीय व्यवस्था की देखरेख की जिम्मेदारी थी।
  • हिसाब रखने वाले और राजस्व अधिकारी खेती की दुनिया में दाखिल हुए।
  • जमीन की सूचना इकट्ठा करने वाले, काफी लोगों पर कर का निर्धारण किया जा सके।
  • भू राजस्व का इतजामात के दो चरण थे :
    • पहला निर्धारण और दूसरा वास्तविक वसूली।
    • जमा निर्धारित रकम थी और हासिल सचमुच वसूली गई रकम।
  • अकबर ने अपने अधिकारियों को यह हुकुम दिया था कि गांव के लोगों से भुगतान नगद के रूप में करें और यदि उनके पास नगद नहीं है तो फसल का भी विकल्प खुला रखें।

चांदी का बहाव

  • 16-17 वी शताब्दी में यात्राओं से “नयी दुनिया” के खुलने से यूरोप के साथ एशिया का खासकर भारत का व्यापार में भारी विस्तार हुआ।
  • भारत के समुद्री व्यापार में एक और भौगोलिक विविधता आई और दूसरी और नई-नई वस्तुओं का व्यापार भी शुरू हो गया।
  • यूरोप के साथ लगातार वस्तुओं का निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चांदी आई।
  • इस तरह चांदी का बहुत बड़ा हिस्सा भारत की तरफ खींचा आता गया।
  • और यह भारत के लिए अच्छा ही था क्योंकि यहां चांदी के प्राकृतिक संसाधन नहीं थे।

 

 

 

 
 
 

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