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Chapter – 12 विद्युत

विद्युत आवेश

  • घर्षणीक विद्युत :- रगड़ या घर्षण से उत्पन्न विद्युत को घर्षणीक विद्युत कहते हैं|
  • विद्युत आवेश :- विद्युत आवेश दो प्रकार के होते हैं|

1. धन आवेश :- कांच कि छड को जब रेशम के धागे से रगडा जाता है तो इससे प्राप्त आवेश को धन आवेश कहते हैं|

2. ऋण आवेश :- एबोनाईट कि छड को ऊन के धागे से रगडा जाता है तो इस प्रकार प्राप्त आवेश को ऋण आवेश कहा जाता है|

  • इलेक्ट्रानों कि कमी के कारण धन आवेश उत्पन्न होता है|
  • इलेक्ट्रानों कि अधिकता से ऋण आवेश उत्पन्न होता है|

विद्युत स्थैतिकता का आधारभूत नियम :-

  • समान आवेश एक दुसरे को प्रतिकर्षित करती हैं|
  • असमान आवेश एकदूसरे को आकर्षित करती हैं|

स्थैतिक विद्युत :- जब विद्युत आवेश विराम कि स्थिति में रहती हैं तो इसे स्थैतिक विद्युत कहते हैं|

धारा विद्युत :- जब विद्युत आवेश गति में होता है तो इसे धारा विद्युत कहते हैं|

विद्युत धारा एवं आवेश

  • जब किसी चालक से विद्युत आवेश बहता है तो हम कहते है कि चालक में विद्युत धारा है |
  • दुसरे शब्दों में, विद्युत आवेश के बहाव को विद्युत धारा कहते है|
  • विद्युत धारा को इकाई समय में किसी विशेष क्षेत्र से विद्युत आवेशों  की मात्रा के बहाव से व्यक्त किया जाता है|
    • विद्युत धारा किसी चालक/ तार से होकर बहता है|
    • विद्युत धारा एक सदिश राशि है|

इलेक्ट्रोनों का बहाव

इलेक्ट्रोंस बैटरी के ऋणात्मक टर्मिनल पर ऋण आवेश के द्वारा प्रतिकर्षित होते हैं तथा धन टर्मिनल पर धन आवेश पर आकर्षित होते हैं| इसलिए इलेक्ट्रोंस ऋण टर्मिनल धन टर्मिनल की ओर प्रवाहित होते हैं| जब ये इलेक्ट्रॉन्स धन टर्मिनल तक पहुँचते हैं तो एक रासायनिक प्रतिक्रिया से वे बैट्री के अंदर स्थान्तरित हो जाते हैं और और पुन: ऋण टर्मिनल पर आ जाते हैं| इस प्रकार इलेक्ट्रॉन्स प्रवाहित होते हैं|

चालक

वे पदार्थ जो अपने से होकर विद्युत आवेश को आसानी से प्रवाहित होने देते हैं चालक कहलाते हैं| उदाहरण : तांबा, सिल्वर, एल्युमीनियम इत्यादि|

  • अच्छे चालक धारा के प्रवाह का कम प्रतिरोध करते हैं|
  • कुचालकों का धारा के प्रवाह की प्रतिरोधकता बहुत अधिक होती है|

कुचालक

  • वे पदार्थ जो अपने से होकर विद्युत धारा को प्रवाहित नहीं होने देते हैं वे पदार्थ विद्युत के कुचालक कहलाते हैं| उदाहरण : रबड़, प्लास्टिक, एबोनाईट और काँच इत्यादि|

चालकता

  • चालकता किसी चालक का वह गुण है जिससे यह अपने अंदर विद्युत आवेश को प्रवाहित होने देते हैं|

अतिचालकता

  • अतिचालकता किसी चालक में होने वाली वह परिघटना है जिसमें वह बहुत कम ताप पर बिल्कुल शून्य विद्युत प्रतिरोध करता है|

कूलाम्ब का नियम

  • किसी चालक के दो बिन्दुओं के बीच आवेशों पर लगने वाले आकर्षण या प्रतिकर्षण बल, आवेशों के  गुणनफल (q1q2) के अनुक्रमानुपाती होते हैं और उनके बीच की दुरी (r) के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होते हैं|

गणितीय विधि से ,

F ∝ q1q2          ……………………. (i)

F ∝ 1/ r2         ……………………..(ii)

k एक स्थिरांक है परन्तु k का मान दो आवेशों के बीच उपस्थित माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करता है|

k का निर्वात में आवेश  9 × 109 Nm2/C2 होता है|

विद्युत परिपथ

  • किसी विद्युत धारा के सतत तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं|

विद्युत का प्रवाह :- आवेशों की रचना इलेक्ट्रोन करते हैं| विद्युत धारा को धनआवेशों का प्रवाह माना गया तथा धनावेश के प्रवाह की दिशा ही विद्युत धारा की दिशा माना गया| परिपाटी के अनुसार किसी विद्युत परिपथ में इलेक्ट्रॉनों जो ऋणआवेश हैं, के प्रवाह की दिशा के विपरीत दिशा को विद्युत धारा की दिशा माना जाता है।

यदि किसी चालक की किसी भी अनुप्रस्थ काट से समय t में नेट आवेश Q प्रवाहित होता है तब उस अनुप्रस्थ काट से प्रवाहित विद्युत धाराI को इस प्रकार व्यक्त करते हैंः

I = Q/t

विद्युत आवेश का SI मात्रक (unit) कूलम्ब (C) है, जो लगभग 6 × 1018 इलेक्ट्रोनों में समाए आवेश के तुल्य होता है|

कूलम्ब :- विद्युत आवेश का SI मात्रक (unit) कूलम्ब (C) है, जो लगभग 6 × 1018 इलेक्ट्रोनों में समाए आवेश के तुल्य होता है |

एक इलेक्ट्रान पर आवेश = -1.6 × 10-19 कूलम्ब (C).

एक प्रोटोन पर आवेश = 1.6 × 10-19 कूलम्ब (C).

आवेश संरक्षण का नियम

विद्युत आवेशों को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही विनाश किया जा सकता है| इसका सिर्फ एक पिंड से दुसरे पिंड तक स्थानांतरण किया जा सकता है|

एम्पियर :- यह विद्युत धारा का SI मात्रक है| जब एक कूलम्ब आवेश को किसी चालक से 1 सेकंड तक प्रवाहित किया जाता है तो इसे 1 एम्पियर धारा कहते है|

1A = 1C/1s;

  • धारा की छोटी मात्रा को मिलीएम्पियर में मापा जाता है |
  • (1 mA = 10-3 A) या मिलीएम्पियर (1 μA = 10-6 A)

विद्युत धारा परिपथ में बैट्री या सेल के धन टर्मिनल (+) से ऋण टर्मिनल (-) की ओर प्रवाहित होती है|

ऐमीटर :- परिपथों की विद्युत धारा मापने के लिए जिस यंत्र का उपयोग करते हैं उसे ऐमीटर कहते हैं। इसे सदैव जिस परिपथ में विद्युत धारा मापनी होती है, उसके श्रेणीक्रम में संयोजित करते हैं।

गैल्वेनोमीटर :- It गैल्वेनोमीटर एक युक्ति है जो किसी विद्युत परिपथ में उपस्थित धारा का पता लगाता है|

परंपरागत धारा :- परंपरागत रूप से, धन आवेशों की गति की दिशा को धारा की दिशा माना जाता है| परंपरागत धारा की दिशा, प्रवाहित होने वाले इलेक्ट्रोनों की दिशा का विपरीत होता है|

वैद्युतस्थैतिक विभव :- विद्युत स्थैतिक विभव अनंत से किसी विद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु तक एक कूलाम्ब के इकाई धन आवेश को लाने में किए गए कार्य की मात्रा से परिभाषित किया जाता है| इसका S.I मात्रक वोल्ट है|

बिभावंतर

इलेक्ट्रोंस तभी गति करते हैं जब किसी परिपथ या चालक के दोनों सिरों के बीच वैद्युत दाब के अंतर हो, वैद्युत दाब में इस अंतर को विभवान्तर कहते हैं|

  • इस विभवान्तर को बैटरी, एक या एक से अधिक सेलों को जोड़कर अथवा डायनेमो द्वारा उत्पन्न किया जाता है|
  • किसी सेल के भीतर होने वाली रासायनिक अभिक्रिया सेल के टर्मिनलों के बीच विभवांतर उत्पन्न कर देती है, ऐसा उस समय भी होता है जब सेल से कोई विद्युत धारा नहीं ली जाती।
  • जब सेल को किसी चालक परिपथ अवयव से संयोजित करते हैं तो विभवांतर उस चालक के आवेशों में गति ला देता है और विद्युत धारा उत्पन्न हो जाती है। किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा बनाए रखने के लिए सेल अपनी संचित रासायनिक ऊर्जा खर्च करता है।

वोल्टमीटर

वोल्टमीटर एक यन्त्र है जिससे किसी चालक के दो सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर को मापा जाता है|

परिभाषा : विभवांतर की माप एक यंत्रा द्वारा की जाती है जिसे वोल्टमीटर कहते हैं।

1. वोल्ट विभवान्तर :- यदि किसी विद्युत धारावाही चालक के दो बिन्दुओं के बीच एक कूलॉम आवेश को एक दूसरे बिंदु तक ले जाने में 1 जूल कार्य किया जाता है तो उन दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर 1 वोल्ट होता है।

वोल्टमीटर का संयोजन :- वोल्टमीटर को सदैव उन बिन्दुओं से पार्श्वक्रम या समांतर क्रम में संयोजित करते हैं जिनके बीच विभवांतर मापना होता है।

ऊपर दिए आकृति में जो की एक विद्युत परिपथ है में प्रतिरोधक R2 के दोनों सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर मापना है तो इसके दो सिरों पर वोल्टमीटर को पार्श्व क्रम या समांतर क्रम में संयोजित कर देंगे| जैसा आकृति में दिखाया गया है, इस प्रकार के संयोजन को पार्श्व क्रम या समान्तर क्रम कहते हैं|

सेल या बैटरी

यह एक युक्ति है जो किसी चालक के दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर को बनाये रखने में सहायता करता है|

सेल :- सेल एक युक्ति है जो अपने अन्दर संचित रासायनिक ऊर्जा का उपयोग कर किसी चालक के दो सिरों के बीच विभवान्तर उत्पन्न करता है, जिससे आवेशों के गति आती है और विद्युत धारा उत्पन्न करता है|

बैटरी :- दो या दो से अधिक सेलों के संयोजन से बने युक्ति को बैटरी कहते है|

ओम का नियम :- “किसी धातु के तार में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा उस तार के सिरों के बीच विभवांतर के अनुक्रमानुपाती होती है, परंतु तार का ताप समान रहना चाहिए। इसे ओम का नियम कहते हैं।” इस नियम के अनुसार,

V ∝ I

Or V = RI

इस विभव-धारा ग्राफ को देखिए

हम देखते हैं कि विभवान्तर बढ़ने के साथ-साथ विद्युत धारा का मान भी बढ़ जाता है और विभवान्तर घटने से धारा भी घट जाता है अर्थात इनमें अनुक्रमानुपातिक संबंध है| इसे ही ओम का नियम कहते है|

प्रतिरोध :- प्रतिरोध चालक का वह गुण है जिससे वह अपने से होकर प्रवाहित होने वाले विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करता है| चालक के इस गुण को प्रतिरोध कहते हैं| ओम के नियम के उपयोग से:

प्रतिरोध = विभवान्तर/ धारा

  • प्रतिरोध का SI मात्रक Ohm(Ω) है|
  • V/I = R, जो कि एक स्थिरांक है|

1. ओम प्रतिरोध :- if यदि किसी चालक के दोनों सिरों के बीच विभवान्तर 1 V है तथा उससे 1 A विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तब उस चालक का प्रतिरोध R, 1 Ω होता है|

जब परिपथ में से 1 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही हो तथा विभवांतर एक वोल्ट का हो तो प्रतिरोध 1 ओम कहलाता है।

2. परिवर्ती प्रतिरोध :- स्रोत की वोल्टता में बिना कोई परिवर्तन किए परिपथ की विद्युत धारा को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अवयव को परिवर्ती प्रतिरोध कहते हैं

धारा नियंत्रक

परिपथ में प्रतिरोध को परिवर्तित करने के लिए जिस युक्ति का उपयोग किया जाता है उसे धारा नियंत्रक कहते हैं।

वे कारक जिन पर एक चालक का प्रतिरोध निर्भर करता है :-

  • चालक की लम्बाई के समानुपाती होता है।
  • अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
  • तापमान के समानुपाती होता है।
  • पदार्थ की प्रकृति पर भी निर्भर करता है।

प्रतिरोधता

1 मीटर भुजा वाले घन के विपरीत फलकों में से धारा गुजरने पर जो प्रतिरोध उत्पन्न होता है वह प्रतिरोधता कहलाता है।

प्रतिरोधकता का SI मात्रक Ωm है।

  • प्रतिरोधकता चालक की लम्बाई व अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के साथ नहीं बदलती परन्तु तापमान के साथ परिवर्तित होती है।
  • धातुओं व मिश्रधातुओं का प्रतिरोधकता परिसर -10-8 -10-6 Ωm ।
  • मिश्र धातुओं की प्रतिरोधकता उनकी अवयवी धातुओं से अपेक्षाकृतः अधिक होती है।
  • मिश्र धातुओं का उच्च तापमान पर शीघ्र ही उपचयन (दहन) नहीं होता अतः इनका उपयोग तापन युक्तियों में होता है।
  • तांबा व ऐलूमिनियम का उपयोग विद्युत संरचरण के लिए किया जाता है क्योंकि उनकी प्रतिरोधकता कम होती है।

प्रतिरोधकों का श्रेणी क्रम संयोजन :-

  • श्रेणीक्रम संयोजन :- जब दो या तीन प्रतिरोधकों को एक सिरे से दूसरा सिरा मिलाकर जोड़ा जाता है तो संयोजन श्रेणीक्रम संयोजन कहलाता है।
  • श्रेणीक्रम में कुल प्रभावित प्रतिरोध :- RS = R₁ + R₂ + R₃
    • V = V₁ + V₂ + V₃
    • V₁ = IR₁ V₂ = IR₂ V₃ = IR₃
    • V₁ + V₂ + V₃ = IR₁ + IR₂ + IR₃
    • V = I(R₁ + R₂ + R₃) (V₁ + V₂ + V₃ = V)
    • IR = I(R₁ + R₂ + R₃)
    • R = R₁ + R₂ + R₃

अत : एकल तुल्य प्रतिरोध सबसे बड़े व्यक्तिगत प्रतिरोध से बड़ा है।

पार्श्वक्रम में संयोजित प्रतिरोधक :-

पार्श्वक्रम संयोजन :- जब तीन प्रतिरोधकों को एक साथ बिंदुओं X तथा Y के बीच संयोजित किया जाता है तो संयोजन पार्श्वक्रम संयोजन कहलाता है।

पार्श्वक्रम में प्रत्येक प्रतिरोधक के सिरों पर विभवांतर उपयोग किए गए विभवांतर के बराबर होता है। तथा कुल धारा प्रत्येक व्यष्टिगत प्रतिरोधक में से गुजरने वाली धाराओं के योग के बराबर होती है।

  • I = I₁ + I₂ + I₃
  • एकल तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम प्रथक।
  • प्रतिरोधों के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है।

श्रेणीक्रम संयोजन की तुलना में पार्यक्रम संयोजन के लाभ

  • श्रेणीक्रम संयोजन में जब एक अवयव खराब हो जाता है तो परिपथ टूट जाता है तथा कोई भी अवयव काम नहीं करता।
  • अलग-अलग अवयवों में अलग-अलग धारा की जरूरत होती है , यह गुण श्रेणी क्रम में उपयुक्त नहीं होता है क्योंकि श्रेणीक्रम में धारा एक जैसी रहती है।
  • पार्श्वक्रम संयोजन में प्रतिरोध कम होता है।

विधुत धारा का तापीय प्रभाव

यदि एक विद्युत् परिपथ विशुद्ध रूप से प्रतिरोधक है तो स्रोत की ऊर्जा पूर्ण रूप से ऊष्मा के रूप में क्षयित होती है, इसे विद्युत् धारा का तापीय प्रभाव कहते हैं।

  • ऊर्जा = शक्ति x समय
  • H = P × t
  • H = VIt। P = VI
  • H = I²Rt V = IR
    • H = ऊष्मा ऊर्जा
  • अत : उत्पन्न ऊर्जा ( ऊष्मा ) = I²Rt

जूल का विद्युत् धारा का तापन नियम इस नियम के अनुसार

  • किसी प्रतिरोध में तत्पन्न उष्मा विद्युत् धारा के वर्ग के समानुपाती होती है।
  • प्रतिरोध के समानुपाती होती है।
  • विद्युत धारा के प्रवाहित होने वाले समय के समानुपाती होती है।
  • तापन प्रभाव हीटर, प्रेस आदि में वांछनीय होता है परन्तु कम्प्यूटर, मोबाइल आदि में अवांछनीय होता है
  • विद्युत बल्ब में अधिकांश शक्ति ऊष्मा के रूप प्रकट होती है तथा कुछ भाग प्रकाश के रूप में उत्सर्जित होता है।
  • विद्युत बल्ब का तंतु टंगस्टन का बना होता है क्योंकि
  • यह उच्च तापमान पर उपचयित नहीं होता है ।
  • इसका गलनांक उच्च (3380° C) है ।
  • बल्बों में रासानिक दृष्टि से अक्रिय नाइट्रोजन तथा आर्गन गैस भरी जाती है जिससे तंतु की आयु में वृद्धि हो जाती है।

विधुत शक्ति :- कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं। ऊर्जा के उपभुक्त होने की दर को भी शक्ति कहते हैं। किसी विद्युत परिपथ में उपभुक्त अथवा क्षयित विद्युत ऊर्जा की दर प्राप्त होती है। इसे विद्युत शक्ति भी कहते हैं। शक्ति P को इस प्रकार व्यक्त करते हैं। P = VI

  • शक्ति का SI मात्रक = वाट है ।
  • 1 वाट 1 वोल्ट × 1 ऐम्पियर
  • ऊर्जा का व्यावहारिक मात्रक = किलोवाट घंटा (Kwh)
  • 1 kwh = 3.6 x 10⁶J
  • 1 kwh = विद्युत ऊर्जा की एक यूनिट

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