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Chapter – 5 तत्वों के आवर्त वर्गीकरण

तत्वों का आवर्त वर्गीकरण

  • अबतक कुल 118 तत्वों की जानकारी है|
  • तत्वों के वर्गीकरण का अर्थ है उनकों उनके गुणधर्मों के आधार पर अलग-अलग समूहों में व्यवस्थित ढंग से रखना|
  • सबसे पहले तत्वों को धातु एवं अधातु में वर्गीकृत किया गया|

डाबेराइनर के त्रिक

डाबेराइनर ने तीन तत्वों का त्रिक बनाया जिन्हें परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में रखने पर बीच वाले तत्व का परमाणु द्रव्यमान, अन्य दो तत्वों के परमाणु द्रव्यमान का लगभग औसत होता है| इस नियम को डाबेराइनर का त्रिक का नियम कहते हैं

उदाहरण: (i) लिथियम (Li), सोडियम (Na) एवं पोटैशियम (K)|

(ii) कैल्शियम (Ca), स्ट्रांटियम (Sr) एवं बेरियम (Ba)|

(iii) क्लोरीन (Cl), ब्रोमिन (Br) एवं आयोडीन (I)|

डाबेराइनर उस समय तक केवल तीन ही त्रिक ज्ञात कर सके थे|

  • डाबेराइनर त्रिक की असफलता :- जिस आधार पर जे. डब्ल्यू डाबेराइनर ने त्रिक बनाए थे उस आधार पर वे तीन ही त्रिक का पता लगा पाए वे अन्य तत्वों के साथ कोई और त्रिक नहीं बता सके| इसलिए त्रिक में वर्गीकृत करने की यह पद्धति सफल नहीं रही|
  • न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धांत :- सन् 1866 में अंग्रेज़ वैज्ञानिक जान न्यूलैंड्स ने ज्ञात तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में व्यवस्थित किया। उन्होंने सबसे कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्व हाइड्रोजन से आरंभ किया तथा 56वें तत्व थोरियम पर इसे समाप्त किया। उन्होंने पाया कि प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व के गुणधर्म के समान है। उन्होंने इसकी तुलना संगीत के अष्टक से की और इसलिए उन्होंने इसे अष्टक का सिद्धांत कहा। इसे ‘न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धांत के नाम से जाना जाता है।
  • इस सिद्धांत के अनुसार :- तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित करने पर प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व के गुणधर्म के समान होता है। इस नियम को न्यूलैंड्स का अष्टक नियम कहा जाता है|

न्युलैंड्स का अष्टक नियम की क्या सीमाए

  • अष्टक का नियम का यह सिद्धांत केवल कैल्सियम तक ही लागु होता था ।
  • न्युलैंड ने सोचा 56 तत्वों के अलावा भविष्य में अन्य तत्व नहीं मिल सकेगा, लेकिन बाद में नए तत्व पाए गए और मिले तत्वों के गुणधर्म अष्टक सिद्धांत से नहीं मिलते थे।
  • न्युलैंड का अष्टक सिद्धांत केवल हल्के तत्वों के लिए ही ठीक प्रकार से लागू हो सका
  • आयरन को कोबाल्ट एवं निकैल से दूर रखा गया है जबकि उनके गुणधर्म में समानता है

मेंडेलिफ की आवर्त सारणी

अपनी सारणी में तत्वों को उनके मूल गुणधर्म, परमाणु द्रव्यमान तथा रासायनिक गुणधर्मों में समानता के आधार पर व्यवस्थित किया।

  • जब मेन्डेलीफ ने अपना कार्य आरंभ किया तब तक 63 तत्व ज्ञात थे।
  • उन्होंने तत्वों के परमाणु द्रव्यमान एवं उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणधर्मों के बीच संबंधों का अध्ययन किया|
  • मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में उर्ध्व स्तंभ को ‘ग्रुप (समूह) तथा क्षैतिज पंक्तियों को (आवर्त) कहते हैं|

ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन के साथ बनने वाले यौगिक का चुनाव :- उन्होंने आक्सीजन एवं हाइड्रोजन का इसलिए चुनाव किया क्योंकि ये अत्यंत सक्रिय हैं तथा अधिकांश तत्वों के साथ यौगिक बनाते हैं। तत्व से बनने वाले हाइड्राइड एवं आक्साइड के सूत्र को तत्वों के वर्गीकरण के लिए मूलभूत गुणधर्म माना गया।

मेंडेलीफ़ की आवर्त सारणी का अवलोकन

  • अधिकांश तत्वों को आवर्त सारणी में स्थान मिल गया था|
  • अपने परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में ये तत्व व्यवस्थित हो गए।
  • यह भी देखा गया कि समान भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म वाले विभिन्न तत्व एक निश्चित अंतराल के बाद फिर आ जाते हैं।

मेंडेलीफ का आवर्त नियम अथवा मेंडेलीफ़ का आवर्त सिद्धांत

आधुनिक आवर्त सारणी

मेंडेलीफ़ की आवर्त सारणी

1.     तत्वों को बढते परमाणु क्रमांक में व्यवस्थित किया गया है।

2.     इस आवर्त सारणी में 18 उध्वार्धर स्तंभ और 7 क्षैतिज पंक्तिया है।

3.     तत्वों के समस्थानिकों को उनके संगत तत्वों के स्थान पर ही रखा गया है क्योंकि उनके परमाणु  क्रमांक समान होते है।

4.     रासायनिक रूप से असमान तत्वों को पृथक पृथक वर्गो में रखा गया है।

1.     तत्वों को बढते परमाणु द्रव्यमानों में व्यवस्थित किया गया है।

2.     इस आवर्त सारणी में 8 उध्वार्धर स्तंभ और 6 क्षैतिज पंक्तिया है।

3.     तत्वों के समस्थानिकों को उचित स्थान नहीं मिले है।

4.     रासायनिक रूप से असमान तत्वों को एक साथ रखा गया है।

उत्कृष्ट गैसों की स्थिति

उत्कृष्ट गैसों को एक अलग समूह में रखा गया है| इन गैसों को अलग समूह में रखने के निम्नलिखित कारण हैं:

  • उत्कृष्ट गैसों की खोज बाद में हुई, फिर मेंडेलीफ़ आवर्त सारणी में पूर्व व्यवस्था में बीना किसी परिवर्तन के ही रखा जा सका|
  • ये सभी समान रासायनिक गुणधर्म होते हैं| और ये बहुत अक्रिय होते हैं क्योंकि इनकी संयोजकता शुन्य होता है|
  • इनका अष्टक पूर्ण होता है और ये किसी भी तत्व से इलेक्ट्रान की साझेदारी नहीं करते है| ये एकल परमाणुक होते है|

समूह

  • आधुनिक आवर्त सारणी में समूह, बाहरी कोश के सर्वसम इलेक्ट्रानिक विन्यास को दर्शाता है | यद्यपि समूह में उपर से नीचे की ओर जाने पर कोशों की संख्या बढ़ती जाती है।
  • एक समूह में तत्वों की संयोजकता इलेक्ट्रोनों की संख्या समान रहती है|

आवर्त

एक ही आवर्त में जब हम आगे बढ़ते है तो देखते हैं कि:

  • तत्वों के संयोजकता इलेक्ट्रोनों की संख्या भिन्न-भिन्न है लेकिन कोशों की संख्या सामान है|
  • आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर यदि परमाणु-संख्या में इकाई की वृद्धि होती है तो संयोजकता इलेक्ट्राॅनों की संख्या में भी इकाई वृद्धि होती है।
  • प्रत्येक आवर्त दर्शाता है कि एक नया कोश इलेक्ट्रानों से भरा गया।
  • किसी कोश में इलेक्ट्रानों की अधिकतम संख्या एक सूत्र 2n2 पर निर्भर करती है जहाँ n, नाभिक से नियत कोश की संख्या को दर्शाता है।
  • दुसरे और तीसरे आवर्त में 8 ही तत्व होते हैं क्योंकि इन तत्वों का L और M कोष होता है जिनमें 8 से अधिक इलेक्ट्रोन नहीं हो सकते हैं|

आवर्त सारणी में तत्वों की स्थिति

आवर्त सारणी में तत्वों की स्थिति से उनकी रासायनिक अभिक्रियाशीलता का पता चलता है। तत्व द्वारा निर्मित आबंध के प्रारूप तथा इसकी संख्या संयोजकता इलेक्ट्रानों द्वारा निर्धारित होती है।

  • संयोजकता :- किसी भी तत्व की संयोजकता उसके परमाणु के सबसे बाहरी कोश में उपस्थित संयोजकता इलेक्ट्रानों की संख्या से निर्धारित होती है।

आधुनिक आवर्त सारणी की प्रवृति :-

संयोजकता :- किसी तत्व के परमाणु के सबसे बाहरी कोशों में उपस्थित संयोजी इलेक्ट्रोनों की संख्या को संयोजकता कहते हैं|

  • परमाणु साइज़ :- एक स्वतंत्र परमाणु के केंद्र से उसके सबसे बाहरी कोश की दूरी ही परमाणु के साइज़ को दर्शाती है। परमाणु की साइज़ को मापने के लिए उसकी त्रिज्या को मापा जाता है| परमाणु की त्रिज्या को पिकोमीटर pm में मापा जाता है|
  • 1pm = 10-12 m होता है|
  • हाइड्रोजन परमाणु की त्रिज्या 37 पिकोमीटर होता है|

कुछ अन्य तत्वों का परमाणु त्रिज्या

तत्व (प्रतिक)

परमाणु त्रिज्या

लिथियम (Li)

 

बेरेलियम (Be)

 

बोरोन (B)

 

ऑक्सीजन (O)

 

नाइट्रोजन (N)

 

कार्बन (C)

 

सोडियम (Na)

 152 pm

 

111 pm

 

88 pm

 

66 pm

 

74 pm

 

77 pm

 

86 pm

आधुनिक आवर्त सारणी के गुण

  • आवर्त में बाईं से दाईं ओर जाने पर परमाणु त्रिज्या घटती है। नाभिक में आवेश के बढ़ने से यह इलेक्ट्रॉनों को नाभिक की ओर खींचता है जिससे परमाणु का साइज़ घटता जाता है।
  • समूह में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु का साइज़ बढ़ता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नीचे जाने पर एक नया कोश जुड़ जाता है। इससे नाभिक तथा सबसे बाहरी कोश के बीच की दूरी बढ़ जाती है और इस कारण नाभिक का आवेश बढ़ जाने के बाद भी परमाणु का साइज़ बढ़ जाता है।
  • आवर्त में जैसे-जैसे संयोजकता कोश के इलेक्ट्रॉनों पर किया जाने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है, इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति घट जाती है।
  • समूह में नीचे की ओर, संयोजकता इलेक्ट्रॉन पर क्रिया करने वाला प्रभावी नाभिकीय आवेश घटता है क्योंकि सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉन नाभिक से दूर होते हैं।
  • आवर्त में बाएं से दाएँ जाने पर धात्विक लक्षण घटता है और समूह में नीचे जाने पर धात्विक गुण बढ़ता है|
  • आवर्त में बाएं से दाएँ जाने पर इलेक्ट्रान त्यागने की प्रवृति घटती जाती है और इलेक्ट्रान ग्रहण करने की प्रवृति बढ़ती जाती है|

आवर्त सारणी में धातुओं, अधतुओं एवं उपधातुओं की स्थिति

  • धातुओं की  स्थिति :- सोडियम (Na) एवं मैग्नेशियम (Mg) जैसी धातुएँ सारणी के बाईं ओर स्थित होती है| वैसे आधुनिक आवर्त सारणी में धातुओं की संख्या अधातुओं एवं उपधातुओं की तुलना में कहीं अधिक है|
    • धातुओं में आबंध बनाते समय इलेक्ट्रान त्यागने की प्रवृति होती है| अर्थात विद्युत धनात्मक होते हैं|
  • उपधातु :- वे तत्व जो धातुओं एवं अधातुओं दोनों के गुणधर्म को प्रदर्शित करते हैं, अर्द्धधातु या उपधातु कहलाते हैं|
    • आधुनिक आवर्त सारणी में एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा धातुओं को अधातुओं से अलग करती है|
    • उदाहरण : बोरोन (B), सिलिकॉन (Si), जर्मेनियम (Ge), आर्सेनिक (As), टेल्यूरियम (Te) और पॉलोनियम (Po).

अधातुओं की स्थिति

  • विद्युतऋणाणात्मकता की प्रवृत्ति के अनुसार अधातुएँ आवर्त सारणी के दाहिनी ओर ऊपर की ओर स्थित होती हैं। अधातुओं के ऑक्साइड की प्रकृति अम्लीय होती है| इनमें इलेक्ट्रोन ग्रहण करने की क्षमता होती है|

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