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पाठ – 4

माटी वाली

-विद्यासागर नौटियाल

सारांश

टिहरी में भागीरथी नदी पर बहुत बड़ा बाँध बना है जिसमें पूरा टिहरी शहर और उसके पास के अनेक गाँव डूब गए। पहले जो लोग अपने घरो, व्यापारियों से जुड़े थे उनके सामने अचानक विस्थापित होने का संकट उपस्थित हो गया।’ माटी वाली ‘कहानी भी इसी विस्थापन की समस्या से जुड़ी है।

बूढ़ी ‘माटी वाली ‘ पूरे टिहरी शहर में घर-घर लाल मिट्टी बाँट रही होती है और उसी से उसका जीवन चलता है घरो में लिपाई-पुताई में लाल मिट्टी काम आती है। एक पुराने कपड़े की गोल गद्दी सिर पर रखकर उस पर मिट्टी का कनस्तर रखे हुए वह घर-घर जाकर मिट्टी बेचती है,उसे सारे शहर के लोग माटी वाली के नाम से ही जानते हैं। एक दिन माटी वाली मिट्टी बेचकर एक घर में पहुँचती है तो मकान मालकिन ने उसे दो रोटियां दी। माटी वाली ने उसमें से एक रोटी अपने सिर पर रखे गंदे कपड़े से बाँध ली | तब तक मालकिन चाय लेकर आ गई। पीतल के पुराने गिलास में माटी वाली फूंक-फूंक कर चाय सुड़कने लगी। माटी वाली ने कहा कहा कि पूरे बाज़ार में अब किसी के पास ऐसी पुरानी चीजें नहीं रह गई हैं जिस पर मालकिन ने कहा की यह पुरखो की चीज़े हैं। न जाने किन कष्टों के साथ इन्हे खरीदा गया होगा | अब लोग इनका कदर नहीं करते। अपनी चीज़ का मोह बहुत बुरा होता है और टिहरी का मोह भी ऐसा ही है। माटी वाली ने कहा कि जिनके पास ज़मीन या कोई संपत्ति है उन्हें कोई ठिकाना मिल ही जाता है लेकिन माटी वाली जैसे बेघर-बाल मजदूरों का क्या होगा ? माटी वाली उस दिन दो-तीन घरों में मिट्टी पहुँचाकर तीन रोटी बांधकर अपने बुड्ढे पति के लिए लायी थीं। वह रोज़ इसी आस में बैठा रहता है। आज वह उसके लिए प्याज भी खरीद लायी थीं कि कूटकर रोटी के साथ दे देगी | घर पहुंची तो पाया की बूढा मर चूका है।

टिहरी बाँध से उखड़े लोगों को बसाने वाले साहेब ने माटी वाली से पूछा की वह जहाँ रहती है वहां का प्रमाण-पत्र ले आये पर उसके पास ऐसा कोई भी प्रमाण-पत्र नहीं था। वह तो सारी ज़िन्दगी माटाखान से खोदकर मिट्टी बेचती रही। माटाखान का भी उसके नाम कोई कागज़ नहीं था। ऐसे में उसे सरकारी मदद नहीं मिली। टिहरी बाँध भरने लगा-लोग अफरातफरी में घर छोड़कर भागने लगे, निचले भाग में बने शमशान पहले डूबने लगे | मानसिक रूप से विक्षिप्त हो चुकी माटी वाली अपनी झोपड़ी के बाहर लोगों से कह रही थीं – “गरीब आदमी का शमशान नहीं उजाड़ना चाहिए।”


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