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पाठ – 5

खेलों में बच्चे तथा महिलाएं

In this post we have given the detailed notes of class 12 Physical Education chapter 5 Khel mein Bachhe aur Mahilaye (Children and Women in Sports) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.

इस पोस्ट में क्लास 12 के शारीरिक शिक्षा के पाठ 5 खेल में बच्चे और महिलाएं (Children and Women in Sports) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं शारीरिक शिक्षा विषय पढ़ रहे है।

गामक विकास

गामक अथवा क्रियात्मक विकास का अर्थ गति क्रियाओं के ऐसे क्रमिक विकास से है जिसमें वह अपनी शारीरिक गतिविधियों पर नियंत्रण पाने के लिए लगातर सक्रिय रहता है और प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होता है। इस प्रक्रिया में मांसपेशियों का बहुत अधिक योगदान रहता है। मानव विकास हेतु गतिशीलता एक अनिवार्य योग्यता है। बैठने, चलने, दौड़ने, चढ़ने, पकड़ने, कूदने, उछलने अथवा फेंकने जैसी विभिन्न गामक गतिविधियां अथवा गामक कौशल दैनिक जीवन हेतु आवश्यक है।

गामक विकास दो प्रकार का होता है :-

स्थूल गामक विकास :-

  • इसमें बालक के शरीर की बड़ी मांसपेशियों का विकास होता है जैसे बैठना, चलना, दौड़ना, आदि।

सूक्ष्म गामक विकास :-

  • इसमें बालक के शरीर की छोटी मांसपेशियों का विकास होता है जैसे उंगलियों और हाथों की मांसपेशियां जो छोटी गतिविधियां करने में शामिल होती हैं।

बच्चों में गामक विकास :-

बच्चों में गामक विकास का अध्ययन प्रभावशाली रूप से बाल्यावस्था के निम्नलिखित तीन चरणों में की जा सकती है :-

  • प्रारंभिक बाल्यावस्था ( 3-6 वर्ष) :-
  • मध्य बाल्यावस्था ( 7-10 वर्ष) :-
  • उत्तर बाल्यावस्था ( 11-12 वर्ष) :-
  • प्रारंभिक बाल्यावस्था ( 3-6 वर्ष) :-

    • इस अवधि के दौरान गामक विकास अधिक तेजी से होता है।
    • इस अवधि के दौरान बालक दौड़ने, कूदने, फेंकने जैसी विभिन्न मूलभूत गतिविधियों में निपुण हो जाता है।
    • यह अवधि ‘विद्यालय-पूर्व अवधि’ के नाम से भी जानी जाती है।
    • प्रारंभिक बाल्यकाल के अंत तक गामक विकास एक संतोषजनक स्तर को पा लेता है।
    • इस अवधि के अंत तक बालक को जिमनास्टिक तथा तैराकी जैसे विभिन्न खेलों हेतु प्रशिक्षित किया जा सकता है।
  • मध्य बाल्यावस्था ( 7-10 वर्ष) :-

    • इस अवधि के दौरान बालक क्रियाशील तथा स्पूर्तिमान हो जाता है।
    • इस अवधि के दौरान बच्चों में अपने समान आयु वर्ग के बच्चों से प्रतिस्पर्धा की इच्छा हो जाती है।
    • इस अवधि में बच्चे उनके द्वारा सीखी गई गतिविधियों की विविधता में दक्षता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
    • गति संबंधी योग्यताएं अपेक्षाकृत तीव्र गति से विकसित होती है।
    • इस अवस्था में गतिविधि के त्रुटिशोधन पर बल दिया जाना आवश्यक है।
  • उत्तर बाल्यावस्था ( 11-12 वर्ष) :-

    • इस अवस्था में आकर बालक की शारीरिक शक्ति में अंतर प्रारंभ हो जाता है।
    • अधिकतर बच्चे सर्वाधिक जटिल गामक कौशलों में महारत हासिल कर लेते हैं।
    • इस अवधि में बच्चे का लचीलापन विकास करने लगता है।
    • वे युक्तियों तथा अधिक जटिल खेल संयोजन को सीखने के लिए तैयार हो जाते हैं।
    • यह अवस्था 12 वर्ष की आयु तक अथवा योवन ( Puberty) के प्रारंभ तक रहती है।

बालक के गामक विकास की बाधाएं अथवा प्रभावित करने वाले कारक :-

जैविक कारक:-

  • यह कारक अनुवांशिक कारक होते हैं जो माता पिता से बच्चे में आ जाते हैं जैसे शरीर का भार, आकार, शक्ति आदि।

पोषण :-

  • यदि किसी बच्चे को पोषक तत्व नहीं मिल पाते तो उसकी कमी के कारण बच्चे के गामक विकास में बाधा आ सकती है।

अवसर की प्राप्ति:-

  •  जिन बच्चों को गामक क्रियाकलाप करने का अधिक अवसर मिलता है उनका गामक विकास बेहतर होना स्वाभाविक है,  परंतु बच्चों को समुचित अवसर प्रदान नहीं किया जाए तो उन बच्चों में गामक विकास की दर भी हो सकती है।

आसन संबंधी विकृतियां :-

  • अनेक प्रकार की मुद्रात्मक विकृतियां बच्चों के गामक विकास में बाधा अथवा अवरोध उत्पन्न करते हैं।

मोटापा :-

  • बच्चे में अधिक भार होना उसके गांव के विकास को प्रभावित कर सकती है।  जिन बच्चों का भार अधिक होता है वह गामक क्रियाकलापों के प्रति अधिक उत्साह प्रदर्शित नहीं करते तथा यहां तक कि इन क्रियाकलापों या क्रियाओं में भाग लेना उन्हें असुविधाजनक प्रतीत होता है।

आसन संबंधी सामान्य विकृतियां :-

1) रीड की अस्थियों का टेढ़ा हो जाना :-

    • यह विकृति अधिक भार को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के कारण होती है।
    • पीठ की मांसपेशियों के कमजोर हो जाने के भी रीड की अस्थियां टेढ़ी हो सकती हैं।
    • ठीक प्रकार से न सोने के कारण भी रीड की अस्थियों का संतुलन ठीक नहीं रहता तथा अनेक विकृतियां आ जाती हैं।
    • इन विकृतियों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बांटा जाता है:-
      • कूबड़ (पीछे को) (Kyphosis) :-
      • कूबड़ ( आगे को) (Lordosis) :-
      • रीड की अस्थियों का एक ओर झुकना (Scoliosis) :-

कूबड़ (पीछे को) (Kyphosis) :-

इस प्रकार के कूबड़ में रीड की अस्थियां पीछे की ओर हो जाती हैं, और इस दशा में छाती सीधी नहीं होती सिर और गर्दन आगे की ओर झुकी होती है। ऐसी अवस्था में श्वसन क्रिया ठीक नहीं रह पाती।

  • कारण:- कुपोषण, बीमारी, स्वच्छ वायु कमी, अपर्याप्त व्यायाम, कंधों पर अत्यधिक भार उठाना, अनुचित फर्नीचर, आगे की ओर झुक कर काम करना आदि।
  • सावधानियां :- माता-पिता व अध्यापकों को प्रारंभ से ही बच्चों को बैठने, खड़े होने, व चलने के उचित आसनों को सिखाना चाहिए।
  • उपाय :-
    • धनुरासन को नियमित रूप से करें।
    • सोने के दौरान अपनी पीठ के नीचे हमेशा तकिया अवश्य रखें।
    • खड़ी हुई स्थिति में अपना सिर को पीछे की ओर मोड़ें तथा कुछ समय इसी स्थिति को बनाए रखें।

कूबड़ (आगे को) (Lordosis) :-

इस विकृति में अस्थियां नीचे से आगे की ओर झुकी होती है।  इस विकृति में चलने व खड़े होने में काफी समस्या उत्पन्न होती है तथा शरीर अकड़ा हुआ रहता है।

  • कारण :- असंतुलित आहार, अनुचित वातावरण, मांसपेशियों का अनुचित विकास, मोटापा, पीठ की मांसपेशियों की कमजोरी आदि ऐसे अनेक कारण है जिससे कूबड़ आगे की ओर हो सकता है।
  • सावधानियां :-
    • संतुलित आहार लेना चाहिए।
    • मोटापे से कम आयु के बच्चों को दूर रखना चाहिए।
    • भार को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हुए शरीर को सीधा रखना चाहिए।
    • अत्यधिक भोजन लेने से परहेज करना चाहिए।
  • उपाय :-
    • हलासन को नियमित रूप से करना चाहिए।
    • पीठ के बल लेटकर अपने सिर तथा टांगों को एक साथ ऊपर उठाएं तथा इस व्यायाम को कम से कम 10 बार अवश्य दो रहा है।

रीड की अस्थियों का एक और झुकना (Scoliosis) :-

स्कोलियोसिस का अर्थ है मुड़ना या घूमना। वास्तव में इसमें बराबर की तरह वक्र होता है तथा इसे स्कोलियोटिक वक्र कहते हैं। यदि रीढ़ की अस्थियों में यह वक्र बाईं ओर हो तो, इसे सामान्यतः C  वक्र कहा जाता है।  कई बार यह वक्र दोनों और भी हो जाता है जिसे S वक्र कहा जाता है क्योंकि इसकी आकृति S जैसी होती है।

  • कारण :- अस्थियों के जोड़ों के रोगों का होना, टांगों का अविकसित होना शिशु के अधरंग, रिकेट्स आदि मुख्य कारण होते हैं।
  • सावधानियां:-
    • संतुलित आहार लेना चाहिए।
    • एक तरफ मुड़ी हुई अवस्था में पड़ने से बचना चाहिए।
    • एक हाथ में भाग लेकर लंबी अवधि तक चलने से बचना चाहिए।
  • उपाय :-
    • जिस तरफ वर्क रहो उसके विपरीत दिशा में झुकना चाहिए।
    • हॉरिजॉन्टल बार को हाथों में पकड़े तथा अपने शरीर को कुछ समय के लिए लटकने दें।
    • तैरने की ब्रेस्टस्ट्रोक तकनीक से तैरने कोशिश करनी चाहिए।

2) चपटे पैर (Flat Foot) :

  • सामान्यतः चपटे पर नवजात शिशुओं में पाए जाते हैं।
  • यदि यह बाल्यावस्था के पार्श्व भाग तक बनी रहती है तो ऐसे बच्चे, जिनमें चपटे पैर की विकृति होती है, एक कुशल खिलाड़ी नहीं बन सकते।
  • ऐसे बच्चों को पैरों में दर्द महसूस होता है व उन्हें खड़े रहने व चलने में समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • किसी व्यक्ति में चैप्टर की विकृति है या नहीं इसका पता लगाना काफी आसान होता है। अपने पैरों को पानी में डुबाएं तथा फर्श पर चलें, यदि फर्श पर पड़े पदचिन्हों की उचित चाप न हो तो आपको चपटे पैरों की विकृति है वास्तव में पैरों की चाप उचित होनी चाहिए।
  • कारण:- चपटे पैर का मुख्य कारण कमजोर मांसपेशियां होती हैं क्योंकि कमजोर मांसपेशियां शरीर के भार को सहन नहीं कर सकती जिसके कारण चपटे पैर की विकृति हो जाती है।
  • सावधानियां:-
    • जूतों की आकृति तथा आकार उचित होने चाहिए।
    • अधिक समय तक नंगे पहनने घूमे।
    • बाल्यावस्था के प्रारंभ में ही भारी वजन ले जाने से बचें।
    • बहुत छोटी अवस्था में शिशुओं को चलाने के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए।
  • उपाय :-
    • एडियों व पंजों पर चलना।
    • वज्रासन करना।
    • रस्सी कूदना।
    • एड़ियों को ऊपर व नीचे करना अर्थात एड़ियों को उठाते हुए पंजे पर शरीर का भार लाना।

3) घुटनों का टकराना (Knock-Knees) :-

इस विकृति में खड़े हुए सामान्य अवस्था में दोनों घुटने आपस में टकराते हैं। टखनों के बीच अंतर बढ़ता जाता है और व्यक्ति को चलने व दौड़ने में परेशानी का सामना करना पड़ता है।

  • कारण:- घुटनों का टकराना मुख्यतः संतुलित आहार विशेष रूप से विटामिन डी कैल्शियम और फास्फोरस की कमी के कारण होता है। यह रिकेट्स के कारण भी हो सकता है।
  • सावधानियां:-
    • संतुलित आहार लेना चाहिए।
    • कम आयु में शिशुओं को पैदल चलाने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए।
  •  उपाय:-
    • इस विकृति को दूर करने के लिए घुड़सवारी करना सबसे अच्छा व्यायाम है।
    • दोनों घुटनों के बीच में सिरहाना या तकिया रखें तथा कुछ समय के लिए बिल्कुल सीधे खड़े हो।
    • वाकिंग कैलिपर का प्रयोग भी लाभदायक होता है।
    • इस विकृति को दूर करने के लिए नियमित रूप से पद्मासन में गोमुखासन अवश्य करने चाहिए।

4) बाहर की ओर मुड़ी हुई या धनुष-आकार टांगे (Bow Legs) :-

यह विकृति घुटनों के टकराने की स्थिति के लगभग विपरीत होती है। जब दोनों पैर एक साथ मिलाकर सीधे खड़े हो तथा दोनों घुटनों के बीच में काफी अंतर हो उस व्यक्ति की बाहर की ओर मुड़ी हुई टांगे होती हैं इस विकृति को जेन्यू वरुम भी कहा जाता है।

  • कारण :- इस विकृति का मुख्य कारण अतिथियों में कैल्शियम में फास्फोरस की कमी होती है, टांगो की लंबी अखियां कोमल होती हैं अतः वह बाहर की ओर मुड़ जाती हैं। यह विकृति विटामिन डी के अभाव के कारण भी हो सकते हैं।
  • सावधानियां:-
    • बच्चों को मोटापे का शिकार ना होने दें।
    • कम आयु में शिशुओं को खड़े होने व पैदल चलाने पर बाध्य न करें।
    • बच्चों को संतुलित आहार देना चाहिए व उनके भोजन में कैल्शियम, फास्फोरस व विटामिन डी आदि की कमी नहीं होनी चाहिए।
  • उपाय:-
    • विटामिन डी की आवश्यक मात्रा लेनी चाहिए।
    • पैरों के अंदर के किनारों पर चलने से बाहर की ओर मुड़ी हुई टांगो को ठीक किया जा सकता है।

5) गोल या झुके हुए कंधे (Round Shoulders) :-

इस विकृति में कंधे गोल हो जाते हैं तथा कभी-कभी वे आगे की ओर झुके हुए प्रतीत होते हैं।

  • कारण:-
    • गोल कंधे अनुवांशिकता के कारण भी हो सकते हैं और अनुचित फर्नीचर पर बैठना भी इसका एक कारण है।
  • सावधानियां:-
    • तंग फिटिंग वाले कपड़े ना पहने।
    • झुकी हुई स्थिति में बैठना खड़े होना वह चलना नहीं चाहिए।
    • अनुचित फर्नीचर पर नहीं बैठना चाहिए।
  • उपाय :-
    • नियमित रूप से चक्रासन वह धनुरासन करें।
    • कुछ समय के लिए हॉरिजॉन्टल बार पर लटकना चाहिए।

महिलाओं की खेलों में सहभागिता:-

  • सन् 1904 मैं आयोजित ओलंपिक खेल में 3 प्रतियोगिताओं में केवल 6 महिलाओं ने ही भाग लिया।
  • महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के आंकड़े:-
  • 2000 – 38.2%( महिलाएं) all over world
  • 2008 – 42.4%( महिलाएं) all over World

खेलों में महिलाओं के कम भागीदारी होने के कारण:-

  • समय का अभाव
  • दर्शकों की रुचि कम होना तथा महिलाओं के खेलों का प्रसारण में होना।
  • खेलों की पुरुष प्रधान संस्कृति
  • अनुकरणीय व्यक्ति के रूप में महिला खिलाड़ियों की कमी
  • महिला प्रशिक्षकों के कम संख्या का होना
  • खेलों में महिलाओं की भागीदारी के प्रति समाज की अभिवृत्ति
  • सुविधाओं तक उचित पहुंच की कमी
  • पुष्टि तथा योग्यता आंदोलन की कमी

 

 


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