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पाठ – 9

मनोविज्ञान और खेल – कूद

In this post, we have given the detailed notes of class 12 Physical Education chapter 9 मनोविज्ञान और खेल – कूद (Psychology and Sports) in Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 12 board exams.

इस पोस्ट में क्लास 12 के शारीरिक शिक्षा के पाठ 9 मनोविज्ञान और खेल – कूद (Psychology and Sports) के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 12 में है एवं शारीरिक शिक्षा विषय पढ़ रहे है।

मनोविज्ञान (Psychology) :-

  • मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञानJ है जो मनुष्य के व्यवहार के आधार पर उसके मन का अध्ययन करता है।

मनोविज्ञान की परिभाषाएं :-

  • ‘‘ मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार का विज्ञान है। ’’
  • “ मनोविज्ञान मनुष्यों के व्यवहार तथा कार्यों का वैज्ञानिक अध्ययन है। ”
  • “ मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार उसके कारण तथा उसकी स्थितियों का अध्ययन है। ’’
  • “ खेल – मनोविज्ञान वह क्षेत्र है जो मनोवैज्ञानिक तथ्यों , प्रदर्शन के सिद्धांतों को सीखने एवं मानव व्यवहार को खेल के मैदान में लागू करने का प्रयास करता है। ’’
  • “ मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों को खेल – कूद एवं शारीरिक गतिविधि के प्रत्येक स्तर पर कौशल – सुधार के लिए लगाना ही खेल मनोविज्ञान है। ’’

व्यक्तित्व का अर्थ :-

  • किसी व्यक्ति के गुणों , लक्षणों , क्षमताओं तथा विशेषताओं इत्यादि का सम्मिलित रूप व्यक्तित्व कहलाता है।
  • अधिकतर लोग किसी व्यक्ति के बाहरी आवरण , उसकी बोलचाल की शैली तथा पहनावे को ही उसका व्यक्तित्व समझ बैठते है जबकि वास्तव में यह केवल व्यक्तित्व निर्माण का एक पक्ष ही है।
  • इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति में निहित गुण , क्षमताएँ तथा उसकी विशेषताएँ इत्यादि भी व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण पक्ष है।
  • व्यक्तित्व किसी व्यक्ति के गुणों का ऐसा संगठित समुच्चय है जो उसके ज्ञान , भावनाओं , अभिप्रेरणाओं तथा विभिन्न परिस्थितियों में उसके व्यवहार को प्रभावित करता है।

व्यक्तित्व की परिभाषाएं :-

  • मन के अनुसार – ‘‘ व्यक्तित्व एक व्यक्ति के गठन, व्यवहार, रुचियां, दृष्टिकोणों, क्षमताओं और तरीकों का सबसे विशिष्ट संगठन है। ’’
  • मार्टन प्रिंस के अनुसार – “ व्यक्ति की सभी प्रकार की जन्मजात प्रकृतियों , आवेगों , प्रवृत्तियों , इच्छाओं , मूल प्रवृत्तियों तथा अनुभवों द्वारा अर्जित बातों का योग ‘ व्यक्तित्व ‘ है। ’’
  • आईजैंक के अनुसार – ‘‘ व्यक्तित्व , जीव के वास्तविक या संभावित व्यवहार के नमूनों का कुल जोड़ होता है। ’’
  • कैटल के अनुसार – ‘‘ व्यक्तित्व वह गुण है जो यह अनुमान लगा पाना संभव बनाता है कि किसी विशिष्ट परिस्थिति में कोई व्यक्ति क्या करेगा। ’’
  • परविन के अनुसार – ‘‘ व्यक्तित्व का तात्पर्य व्यक्ति की उन विशेषताओं से है जो उसकी भावनाओं की सघनता ; विचारों और व्यवहार के प्रतिरूप को दर्शाता है। ’’

व्यक्तित्व के आयाम (Dimensions of Personality) :-

1) शारीरिक आयाम :-

  • प्रत्येक व्यक्ति का शारीरिक स्वरूप , जैसे कि उसकी कद – काठी , रंग – रूप तथा उसका स्वास्थ्य जो उसके व्यक्तित्व का मूल आधार होता है ।
  • लोग ऐसे व्यक्ति की और जल्दी आकर्षित होते हैं जिसकी लंबाई तथा शारीरिक अनुपात अच्छा हो , आसन ठीक हो , गठीला शरीर तथा आकर्षक नैन – नक्श हो ।
  • जबकि जिस व्यक्ति में इन में से कुछ गुण कम हो तो वह पहली बार में दूसरों पर अच्छा प्रभाव डालने में विफल ही रहता है , फिर भले ही उसमें कई आंतरिक गुण क्यों न हो ।
  • इसलिए शारीरिक आयाम को व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण आयाम माना जाता है ।

2) बौद्धिक आयाम :-

  •  किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की असल पहचान उसकी मानसिक तथा बौद्धिक क्षमताओं से ही होती है ।
  • कोई भी व्यक्ति समाज के कल्याण हेतु तब तक कोई योगदान नहीं दे सकता , जब तक कि यह मानसिक रूप से सक्षम न हो तथा उसने पर्याप्त ज्ञान अर्जित न किया हो ।
  • हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि विश्व की कई महान विभूतियाँ दिखने में भले ही आकर्षक नहीं थी , किंतु उनमें विलक्षण मानसिक तथा बौद्धिक गुण थे ।
  • चिंतन , तर्क , अवज्ञान तथा निर्णय लेने की क्षमता आदि जैसे जन्मजात गुणों को कुछ हद तक सीखा भी जा सकता है परंतु इनका विकास केवल शिक्षा द्वारा संभव है।

3) सामाजिक आयाम :-

  • मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । बिना समाज के मनुष्य का अस्तित्व संभव नहीं है । समाज में रहकर ही उसका समाजीकरण होता है ।
  • अपने आपको समाज की मान्यताओं एवं परंपराओं के अनुसार ढालने की क्षमता भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को काफी हद तक प्रभावित करता है ।
  • व्यक्ति की सामाजिक स्वीकार्यता का श्रेष्ठ स्तर ही उसके अच्छे व्यक्तित्व की पहचान होती है।
  • सामाजिक नियमों , अनुशासन , रीति – रिवाजों परम्पराओं , सहभागिता इत्यादि अतः समाज द्वारा स्वीकार्य व्यक्ति की पहचान अलग ही होती है के अनुरूप चलने तथा व्यवहार करने वाले व्यक्ति का समाज में श्रेष्ठ स्थान होता है।

4) भावनात्मक आयाम :-

  • व्यक्ति में भावनात्मक स्थिरता उसके व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग होता है ।
  • भावनात्मक स्थिरता से तात्पर्य , व्यक्ति का भय , क्रोध , घृणा , अवसाद , दुःख , ईर्ष्या , द्वेष जैसी विभिन्न भावनाओं पर पूर्ण नियंत्रण से है ।
  • कई बार खिलाड़ी कोई बड़ी प्रतियोगिता जीतने या हारने पर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाने के कारण रोने लगते हैं, जिसके कारण उनके व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है
  • ऐसा करने से वह अपनी भावनात्मक अस्थिरता याम में से किसी भी आयाम की कमी है तो यह व्यक्ति के व्यक्तित्व को अवश्य प्रभावित करेगा ।

व्यक्तित्व के प्रकार

शरीर के चार देह द्रव्यों के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण :-

  • आशावादी तथा हंसमुख
  • निराशावादी तथा दुखी
  • चिड़चिड़ा अथवा उत्तेजनीय
  • भाव शून्य अथवा शांत

जर्मन दार्शनिक स्प्रैंगर के अनुसार व्यक्तित्व का वर्गीकरण :-

  • दार्शनिक तथा वैज्ञानिक
  • कला अथवा सौंदर्य के प्रेमी
  • संत, पुजारी आदि
  • व्यापारी
  • राजनेता अथवा राजनीतिज्ञ
  • समाज सेवी और समाज सुधारक

शैल्डन के अनुसार देह आधारित व्यक्तित्व का वर्गीकरण :-

1) एंडोमोर्फ :-

इस श्रेणी के लोगों के कंधे और नितंब चौड़े होते हैं। गोलाकृतिक शरीर वाले व्यक्तियों का शरीर काफी कोमल होता है तथा उनकी मांसपेशियाँ भी अविकसित होती है। ऐसे लोग स्नेही , सामाजिक , प्रतिक्रिया देने में धीमे तथा प्रेमी स्वभाव के होते हैं। इस आकृति शरीर वाले लोगों के लिए ऐसे खेलों में भाग लेना कठिन होता है जिनमें अधिक गति की आवश्यकता होती है।

2) मेसोमोर्फ :-

इस प्रकार के लोगों का शारीरिक आकार गठीला होता है। उनके कंधे चौड़े और कमर पतली होती है। इस शारीरिक आकृति के व्यक्ति शारीरिक रूप से विभिन्न क्रियाएँ करने के योग्य होते है तथा खिलाड़ी के रूप में आक्रामक प्रवृत्ति रखते हैं। ये ऊर्जावान , साहसी , प्रभुत्व जमाने वाले , जोखिम उठाने वाले तथा साहसपूर्ण क्रियाओं में रुचि रखने वाले होते हैं।

3) एक्टोमोर्फ :-

इस प्रकार के लोगों का शरीर दुबला – पतला और निबंध , कंधे व सीना कम चौड़ा होता है । इस आकृति वाले व्यक्ति का शारीरिक ढाँचा थोड़ा कमजोर तथा इनका शारीरिक भार आसानी से नहीं बढ़ता । ऐसे व्यक्तियों में अधिक शक्ति नहीं होती परंतु काफी सहन क्षमता होती है । ये दुश्चिंता से ग्रस्त , अत्यधिक तनावग्रस्त , गोपनीय , अन्तर्मुखी तथा अकेले रहना पसंद करते हैं ।

फ्रीडमैन और रोज़ेनमैन के अनुसार व्यक्तित्व का वर्गीकरण :-

1) ‘ A ’ प्रकार का व्यक्तित्व :-

इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले व्यक्ति कार्य में अत्याधिक रुचि लेते हैं तथा बहुत स्पर्धाशील होते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति क्रोध , शत्रुता तथा आक्रामकता के कारण शीघ्र ही उत्तेजित हो जाते हैं जिसके कारण उनमें उच्च रक्तचाप तथा हृदय संबंधी बीमारियों की संभावना अधिक होती हैं।

2) ‘ B ’ प्रकार का व्यक्तित्व :-

इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले व्यक्ति शांत तथा सहनशील होते हैं । वे जल्दी क्रोधित नहीं होते जिसके कारण वह तनाव का प्रभावशाली रूप से सामना कर पाते हैं। अधिक महत्त्वाकांक्षी तथा अति के इच्छुक न होने के कारण वह अपने जीवन से संतुष्ट रहते हैं।

3) ‘ C ’ प्रकार का व्यक्तित्व :-

इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले लोग आकर्षक , मनोहर तथा शांत होते हैं । ऐसे लोग अपनी भावनाओं को दबाने में सक्षम होते हैं । ऐसे लोग सुस्त , निष्क्रिय , निराश तथा नकारात्मक सोच वाले होते हैं। वे स्वयं को अकेला महसूस करते हैं। निष्क्रिय तथा सुस्त व्यवहार के कारण ऐसे लोगों में कैंसर की संभावना अधिक पाई जाती है।

4) ‘ D ’ प्रकार का व्यक्तित्व :-

इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले लोगों में अत्यधिक कष्ट तथा पीड़ा सहने की क्षमता होती है । नकारे जाने अथवा मतभेद के भय के कारण यह लोग दूसरों से अपनी भावनाओं को सांझा नहीं करते तथा उन्हें निरंतर रूप से दबाते रहते हैं। इसी कारण इस व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों में हृदय संबंधी बीमारियों तथा उच्च रक्तचाप एवं अवसादग्रस्त होने की संभावना अधिक रहती है।

कार्ल जी. जंग के अनुसार व्यक्तित्व का वर्गीकरण :-

1) अंतर्मुखी :-

अतंर्मुखी वह व्यक्ति होता है जो अकेला रहना पसंद करता है । सामान्य रूप से ये लोग दूसरों के साथ ज्यादा घुलना – मिलना पसंद नहीं करते । ये लोग शर्मीली प्रवृत्ति के होते हैं तथा उनके लिए सामाजिक वार्तालाप थकाऊ होता है।
इस प्रवृत्ति के लोग अधिकतर शांत रहना पसंद करते हैं तथा अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहते हैं । इनमें सुनने का कौशल भली – भाँति विकसित होता है तथा ये सोच – समझकर अपने विचार प्रकट करत हैं।

2) बहिर्मुखी :-

बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति सामाजिक रूप से अधिक सक्रिय रहते हैं । ये समूहीकरण विचारधारा वाले व्यक्ति होते हैं तथा अधिक आत्मविश्वासी होते हैं । ये किसी भी व्यक्ति से बातचीत करने में झिझकते नहीं हैं । इनका दृष्टिकोण विकसित होता है तथा ये टीम में काम करना पसंद करते हैं । ये खुले विचारों वाले , अनुकूल प्रवृत्ति वाले एवं आसानी से घुलने – मिलने वाले होते हैं।

3) उभयमुखी :-

अधिकतर लोग उभयमुखी व्यक्तित्व के होते हैं , अर्थात् उभयमुखी व्यक्तित्व के लोग वह होते हैं जिनमें अंतर्मुखी तथा बहिर्मुखी व्यक्तित्व के गुण होते है।

पॉल कॉस्टा तथा रोबर्ट मैक्रे द्वारा दिया गया व्यक्तित्व का पंच कारक मॉडल :-

व्यक्तित्व के पांच सिद्धांत निम्नलिखित हैं:-

  • अनुभवों के लिए खुलापन
  • बहिर्मुखता
  • सहमतिशीलता
  • मनोविक्षुब्धता
  • अन्तर्विवेकशीलता

अभिप्रेरणा (Motivation)

  • अभिप्रेरण ( Motivation ) एक प्रकार की शक्ति है जो मनुष्य को कोई कार्य आरम्भ करने , उसे चलाए रखने तथा उसमें सफलता प्राप्ति के लिए प्रेरित करती है।
  • अभिप्रेरण शब्द की उत्पत्ति ‘ प्रेरक ‘ नामक शब्द से हुई है । प्रेरक शब्द का तात्पर्य किसी ऐसे विचार , भावना ( Feeling ) व दशा का संयोजन है , जिसके परिणामस्वरूप कोई व्यक्ति कार्य करता है ।

अभिप्रेरण की परिभाषाएं :-

  • एल्डरमैन के अनुसार “अभिप्रेरण व्यक्ति में क्रिया के लिए उत्तेजना का सामान्य स्तर होता है।’’
  • मोरगन व किंग के अनुसार ‘‘ अभिप्रेरण का संबंध व्यक्ति की उस दशा से है जो उसके व्यवहार को किसी लक्ष्य की ओर खींचती है। ’’
  • डफ्फी के अनुसार ‘‘अभिप्रेरण व्यवहार की तीव्रता और दिशा का नाम है।’’

अभिप्रेरण के प्रकार :-

1) आंतरिक अभिप्रेरण :-

आंतरिक अर्थात् भीतर से , जब किसी कार्य को करने की प्रेरणा शक्ति व्यक्ति के अंदर से आती है तो उसे आंतरिक अभिप्रेरण कहते हैं। जब व्यक्ति अपनी खुशी से या अपनी इच्छा से कोई कार्य करता है तो यह कहा जाता है कि वह अपने आंतरिक अभिप्रेरण के कारण वह कार्य कर रहा है।

2) बाहरी अभिप्रेरण :-

बाहरी अर्थात् बाहर से , जब किसी कार्य को करने की प्रेरणा शक्ति व्यक्ति को बाहरी कारकों ( external factors ) से प्राप्त हो तो उसे बाहरी अभिप्रेरण कहते हैं। पुरस्कार , प्रशंसा , समाज में ऊँचा स्थान , दण्ड या बदनामी का डर बाहरी अभिप्रेरण के ही उदाहरण हैं। हालांकि बाहरी अभिप्रेरण के इन उदाहरणों का हर व्यक्ति पर अलग – अलग प्रभाव पड़ता है।

अभिप्रेरण की तकनीकें :-

1) प्रतियोगिता का भव्य आयोजन :-

यदि प्रतियोगिता का आयोजन भव्य और शानदार ढंग से किया जाए तो खिलाड़ी को बेहतर प्रदर्शन के लिए अभिप्रेरणा मिलती है।

2) विषमलिंगियों की उपस्थिति :-

हर व्यक्ति अपने विपरीत लिंग के समक्ष अधिक स्मार्ट व सक्रिय रहने का प्रयास करता है। यह मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति है। इसलिए प्रतियोगिताओं के दौरान विपरीत सेक्स की मौजूदगी भी खिलाड़ियों को अच्छे प्रदर्शन के लिए अभिप्रेरित करती है।

3) दर्शक :-

प्रतियोगिता के दौरान दर्शकों की अधिक संख्या भी खिलाड़ियों को अच्छे प्रदर्शन के लिए अभिप्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

4) शाब्दिक टिप्पणियाँ :-

प्रतियोगिता के दौरान अक्सर नए तथा अनुभवहीन खिलाड़ी शाब्दिक टिप्पणियों के कारण उत्तेजित होकर अभिप्रेरित हो जाते हैं। हालांकि अनुभवी खिलाड़ियों को इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता।

5) प्रेरणादायक संगीत :-

प्रतियोगिता से पहले यदि प्रतियोगिता स्थल पर कोई प्रेरणादायक संगीत , जैसे कि राष्ट्रीयगान बजाया जाए तो यह निश्चित ही खिलाड़ियों को अभिप्रेरित करता है।

खेलों में आक्रामकता

आक्रामकता का अर्थ :-

  • मनोवैज्ञानिक भाषा में , आक्रामकता को एक ऐसे व्यवहार के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके चलते व्यक्ति स्वयं या दूसरों को किसी प्रकार की हानि पहुँचा सकता है।
  • हमारे समाज में आक्रामकता को एक नकारात्मक मनोवैज्ञानिक विशेषता के रूप में देखा जाता हैं तो कई खेल मनोवैज्ञानिक अभ्यास तथा प्रतियोगिता के दौरान आक्रामकता को कुछ हद तक जरूरी मानते है। उनका मानना है कि खेलों में आक्रामकता खेल प्रदर्शन को बढ़ा सकती है।

खेलों में आक्रामकता की परिभाषाएं :-

  • बैरन एंड रिचर्डसन के अनुसार ‘‘ अधिकांश लोग आक्रामकता को नकारात्मक दृष्टि से देखते है , हालांकि खेलों में आक्रामकता से खिलाड़ी का प्रदर्शन में सुधार आता है। ’’
  • ब्राइटिमियर के अनुसार ‘‘एक खिलाड़ी का खेल के नियमों के भीतर रहकर , बिना अपने प्रतिद्वंद्वी को नुकसान पहुँचाए , अधिक तीव्रता व आक्रामकता से खेलना। यह खेल आक्रामकता का सकारात्मक रूप है। ’’

खेलों में आक्रामकता के प्रकार :-

1) शत्रुतापूर्ण आक्रामकता :-
  • खेल के दौरान शत्रुतापूर्ण खेल आक्रामकता तब मानी जाती है , जब किसी खिलाड़ी को मुख्य उद्देश्य अपने विरोधी टीम के खिलाड़ियों को नुकसान अथवा चोट पहुँचाना होता है।
  • साधारण शब्दों में , शत्रुतापूर्ण आक्रामकता तब होती है जब मुख्य लक्ष्य विरोधी खिलाड़ी को शारीरिक हानि या चोट पहुँचाना हो। कई बार शत्रुतापूर्ण आक्रामकता को अच्छा माना जाता है।
2) सहायक आक्रामकता :-
  • सहायक आक्रामकता का मुख्य उद्देश्य आक्रामकता का प्रयोग कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना होता है।
  • सहायक आक्रमकता एक ऐसा व्यवहार है जिसमें खिलाड़ी का इरादा किसी को चोट पहुँचाना नहीं होता है बल्कि वह दूसरों का ध्यान , प्रशंसा या विजय प्राप्त करना चाहता है।
3) सशक्त या मुखर व्यवहार :-
  • सशक्त या मुखर व्यवहार के दौरान खिलाड़ी दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए तथा विरोधी पक्ष के खिलाड़ी की एकाग्रता भंग करने के लिए मौखिक बल का प्रयोग करता है।

आक्रामकता के कारण :-

1) जन्मजात प्रवृत्ति :-
  • कई बार आक्रामकता एक जन्मजात प्रवृत्ति भी हो सकती है। सामान्यतया इसे स्व – रक्षा के लिए प्रयोग किया जाता है। कुछ लोगों में जन्मजात हिंसक प्रवृत्ति देखी जाती है। ऐसे लोग अन्य लोगों को शारीरिक अथवा मानसिक कष्ट पहुँचाने में आनंद का अनुभव करते हैं।
2) शरीर – क्रियात्मक तंत्र :-
  • शरीरक्रियात्मक तंत्र के कारण भी आक्रामकता की स्थिति बन सकती है। कभी – कभी बाहरी तत्व मस्तिष्क के उस भाग को अत्यधिक सक्रिय कर देते हैं जो संवेगों का अनुभव करता है। ऐसे में व्यक्ति अत्यंत संवेदनशील होकर आक्रामक हो जाता है।
3) बच्चों का पालन – पोषण :-

किसी व्यक्ति की आक्रामकता इस बात पर भी निर्भर करती है कि उसका पालन – पोषण कैसे किया गया। अक्सर देखा गया है कि जिन बच्चों को शारीरिक दंड दिया जाता है वे आक्रामक प्रवृत्ति के हो सकते हैं। शारीरिक दंड उनमें क्रोध उत्पन्न करता है जिसका प्रदर्शन वे आक्रामक व्यवहार द्वारा करते हैं।

4) कुंठा :-
  • किसी कुंठा के कारण भी व्यक्ति आक्रामक हो सकता है। यदि किसी व्यक्ति को उसके मूल अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है अथवा उसे अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँचने दिया जाता तो उसके मन में कुंठा उत्पन्न हो जाती है। अपनी कुंठा का शमन वह आक्रामक व्यवहार अथवा हिंसा द्वारा करता है।

खेलों में आक्रामकता को कम करने के सुझाव :-

  • कोच , टीम मेनेजमेंट तथा कप्तान द्वारा खिलाड़ियों को खेल भावना के अनुरूप खेलने पर जोर देना।
  • खिलाड़ियों के आक्रामक व्यवहार के प्रति सख्त कार्यवाही करना।
  • खिलाड़ियों में खेल के दौरान आक्रामकता को कम करने के लिए अभ्यास सत्र के दौरान आक्रामकता प्रबंधन कार्यशाला का आयोजित करना।
  • मीडिया से जुड़े लोगों को भी चाहिए कि वह खेल के दौरान आक्रामकता दिखाने वाले खिलाड़ी को बहुत ज्यादा महत्त्व न दें अपितु उसके आक्रामक व्यवहार की निंदा करें।

 


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