पाठ – 5 भारतीय समाजशास्त्री अनन्तकृष्ण अरूयर (1861 – 1937) अनन्तकृष्ण अरूयर को 1902 में कोचीन के दीवान ने राज्य के नृजातीय सर्वेक्षण के लिए कहा क्योंकि ब्रिटिश सरकार सभी रजवाडों में नृजातीय सर्वेक्षण कराना चाहती थी । उन्होनें इस कार्य को स्वयंसेवी के रूप में पूर्ण किया । कोचीन रजवाडें की तरफ से उन्हे [...]
पाठ – 4 पाश्चात्य समाजशास्त्री: एक परिचय समाजशास्त्र की शुरुआत समाजशास्त्र की शुरुआत 19 सदी में पश्चिमी यूरोप में हुई थी। समाजशास्त्र को क्रांति के युग की संतान भी कहा जाता है। समाजशास्त्र के अनुभव में तीन क्रांतियों का महत्वपूर्ण हाथ है :- 1. ज्ञानोदय अथवा विवेक का युग 2. फ्रांसिसी क्रांति 3. औद्योगिक क्रांति [...]
पाठ – 3 पर्यावरण और समाज पर्यावरण हम जिस वातावरण और परिवेश के चारों ओर से घिरे हैं उसे पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण के प्रकार मुख्यतः पर्यावरण दो प्रकार का होता है :- प्राकृतिक पर्यावरण मानव द्वारा निर्मित पर्यायवरण पारिस्थितिकी पारिस्थितिकी शब्द का अर्थ एक ऐसे जाल से है जहाँ भौतिक और जैविक व्यवस्थाएँ तथा [...]
पाठ – 2 ग्रामीण तथा नगरीय समाज में सामाजिक परिवर्तन तथा सामाजिक व्यवस्था सामाजिक परिवर्तन यह वे परिवर्तन हैं जो कुछ समय बाद समाज की विभिन्न इकाइयों में भिन्नता लाते हैं और इस प्रकार समाज द्वारा मानव संस्थाओं, प्रतिमानों, संबंधों, प्रक्रियाओं, व्यवस्थाओं आदि का स्वरूप पहले जैसा नहीं रह जाता है, यह हमेशा चलने वाली [...]
पाठ – 1 समाज में सामाजिक संरचना, स्त्रीकरण और सामाजिक प्रक्रियाएं सामाजिक संरचना सामाजिक संरचना’ शब्द के अंतर्गत, समाज संरचनात्मक है। सामाजिक संरचना’ शब्द का इस्तेमाल, सामजिक सम्बन्धों, सामाजिक घटनाओं के निश्चित क्रम हेतु किया जाता है। समाजीकरण स्तरीकरण समाजीकरण स्तरीकरण से अर्थ,”समाज में समूहों के मध्य संरचनात्मक असमानताओं के अस्तित्व से है, भौतिक एवं [...]
पाठ – 5 समाजशास्त्र: अनुसंधान पद्धतियाँ सामाजिक शोध सामाजिक शोध का अर्थ सामाजिक घटनाओं या विभिन्न सिद्यांतों के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान कि प्राप्ति के लिए प्रयोग में लाई गई वैज्ञानिक पद्धति सामाजिक शोध कहलाती है। समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता समाजशास्त्र एक विज्ञान है क्योंकि इसकी शोध पद्धतियां वस्तुनिष्ठता पर आधारित होती है . ” वस्तुनिष्ठता [...]
पाठ – 4 संस्कृति तथा समाजीकरण टायरल के अनुसार संस्कृति संस्कृति वह जटिल पूर्णता है जिसके अंतर्गत ज्ञान, विश्वास, कला नीति, कानून, प्रथा और अन्य क्षमताएँ व आदतें सम्मिलित हैं जिन्हें मनुष्य समाज के सदस्य के रूप में ग्रहण करता है। संस्कृति सामाजिक अंतः क्रिया के द्वारा संस्कृति सीखी जाती है तथा इसका विकास होता [...]
पाठ – 3 सामाजिक संस्थाओं को समझना सामाजिक संस्थाऐ सामाजिक संस्थाओं को सामाजिक मानकों, आस्थाओं, मूल्यों और समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए निर्मित संबंधों की भूमिका के जटिल ताने बाने के रूप में देखा जाता है। सामाजिक संस्थाएँ सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए विद्यमान होती है। महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाए हैं [...]
पाठ – 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग सामाजिक समूह सामाजिक समूह से हमारा अभिप्राय व्यक्तियों के किसी भी ऐसे संग्रह से है जो के आपस में एक – दूसरे के साथ सामाजिक संबंध रखते हैं। सामाजिक समूह की विशेषताएँ दो या दो से व्यक्तियों का होना। सामान्य स्वार्थ , उद्देश्य या [...]
पाठ – 1 समाजशास्त्र एवं समाज समाज समाजशास्त्रियों के अनुसार समाज के लोगों में पाए गए संबंधों के जाल को जो कि एक दूसरे से जुड़े होते हैं वह समाज हैं और यह सम्बन्ध अमूर्त ( Abstract ) संबंध होते हैं। समाज की प्रमुख विशेषताएँ समाज अमूर्त है। समाज में समानता व भिन्नता है। पारस्पारिक [...]