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पाठ – 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं -राजेश जोशी सारांश इस कविता में बच्चों से बचपन छीन लिए जाने की पीड़ा व्यक्त हुई है। कवि ने उस सामाजिक – आर्थिक विडंबना की ओर इशारा किया है जिसमें कुछ बच्चे खेल, शिक्षा और जीवन की उमंग से वंचित हैं। कवि कहता है कि बच्चों [...]
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पाठ – 16 यमराज की दिशा -चंद्रकांत देवताले सारांश प्रस्तुत कविता में कवि ने सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर इशारा करते हुए कहा है कि जीवन-विरोधी ताकतें चारों तरफ़ फैलती जा रही हैं। जीवन के दुख-दर्द के बीच जीती माँ अपशकुन के रूप में जिस भय की चर्चा करती थी, अब वह [...]
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पाठ – 15 मेघ आए -सर्वेश्वर दयाल सक्सेना सारांश ‘मेघ आए’ कविता में कवि श्री सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने प्रकृति का अद्भुत वर्णन किया है। मानवीकरण के माध्यम से कवि ने कविता को चत्ताकर्षक बना दिया है। कवि ने बादलों को मेहमान के समान बताया है। पूरे साल भर के इंतशार के बाद जब बादल आएए [...]
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पाठ – 14 चंद्र गहना से लौटती बेर -केदारनाथ अग्रवाल सारांश देख आया चंद्र गहना। देखता हूँ दृश्य अब मैं मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला। एक बीते के बराबर यह हरा ठिगना चना, बाँधे मुरैठा शीश पर छोटे गुलाबी फूल का, सजकर खड़ा है। चंद्र गहना से लौटती बेर भावार्थ:- चंद्र गहना से [...]
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पाठ – 13 ग्राम श्री -सुमित्रानंदन पंत सारांश फैली खेतों में दूर तलकमखमल की कोमल हरियाली,लिपटीं जिससे रवि की किरणेंचाँदी की सी उजली जाली !तिनकों के हरे हरे तन परहिल हरित रुधिर है रहा झलक,श्यामल भू तल पर झुका हुआनभ का चिर निर्मल नील फलक ! भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ जी के [...]
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पाठ – 12 कैदी और कोकिला -माखनलाल चतुर्वेदी सारांश यह आजादी से पूर्व की कविता है। इसमें कवि ने अंग्रेज़ों के अत्याचारों का लिखित चित्रण किया है। स्वतंत्रता सेनानियों के यातनाओं को प्रदर्शित करने के लिए कवि ने कोयल का सहारा लिया है। जेल में बैठा एक कैदी कोयल को अपने दुःखों के बारे में [...]
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पाठ – 11 सवैये -रसखान सारांश मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन। जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥ पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन। जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन। रसखान के [...]
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पाठ – 10 वाख -ललद्यद सारांश रस्सी कच्चे धागे की खींच रही मैं नाव जाने कब सुन मेरी पुकार,करें देव भवसागर पार, पानी टपके कच्चे सकोरे ,व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे, जी में उठती रह-रह हूक,घर जाने की चाह है घेरे। व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने नाव की तुलना अपने जिंदगी से करते [...]
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पाठ – 9 साखियाँ एवं सबद -कबीर सारांश साखियाँ मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं। मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं।। अर्थ – इस पंक्ति में कबीर ने व्यक्तियों की तुलना हंसों से करते हुए कहा है की जिस तरह हंस मानसरोवर में खेलते हैं और मोती चुगते हैं, वे उसे छोड़ कहीं [...]
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पाठ – 8 एक कुत्ता और एक मैना -हजारीप्रसाद दिवेदी सारांश एक कुत्ता और एक मैना पाठ या निबंध लेखक हज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी के द्वारा लिखित है| इस निबंध में पशु-पक्षियों और मानव के बीच प्रेम, भक्ति, विनोद और करुणा जैसे मानवीय भावों का प्रस्फुटन हुआ है| प्रस्तुत निबंध में कवि ‘रवीन्द्रनाथ’ की कविताओं और [...]